Thursday 15 October 2015

कविता २५७. लब्ज के मायने

                                   लब्ज के मायने
हर बार लब्ज जो कुछ ग़लत कह जाते है जिन्दगी मे हर बार तो वह ग़लत ही असर लाते है जिन्हें हर बार परख लेते है हम हर बार लब्जों को मौकों मे समज लेना हम जानते है
जिन्हें फुरसत मे समजा करते थे कभी वह लब्ज अगर ग़लत बोले तो तीरों कि तरह मन मे नश्तर चुभाते है अगर लब्ज सीधे हो और तारीफ़ के क़ाबिल हो तो हम अनसुना भी करते है
पर जब वह दर्द दे तो सारी उम्र जीवन मे चुभा करते है जिन्हें समज लेने कि फुरसत भी नहीं है वह लब्ज जीवन मे साँस बन कर हम जिया करते है जब वह चोट बन के दिल को घायल किया करते है
जिन्हें परख लेने कि हमे फुरसत ही नहीं वह लोग कहाँ उम्मीद दिया करते है तो जिनको समज कर अपना हम मन मे चोट लिया करते है वह अक्सर अपने नहीं पराये ही हुआ करते है
जीवन कि हर उम्मीद को दे कर एक ख़ुशी हम जो जीवन को खुशहाल जिया करते है उन्हें जाने क्यूँ रख कर भरोसे उनके जो हमारी बातों भी न शामिल उनके भरोसे रखकर हम रो लिया करते है
जीवन के हर रंग को समज के फुरसत मे कभी हम जिन्दगी जिया करते है क्योंकि जीवन को हमारा अपने लिए ही होता है उसे जाने क्यूँ हम जाया किया करते है
जीवन को अगर परखो समजदारी से तो लोग खाक जीवन मे जिया करते है जिसे समजे हर पल मे जीवन के अंदर वह बात समज लेना ज़रूरी होता है
जिस बात को समज लेने कि ज़रूरी होती है उस बात को छोड़ कर जाने क्यूँ ग़लत बात को हर बार परख लेना हम दिल से चाहते है अगर छोड़ कर जाये तो ही ख़ुशियाँ दे जाती है
जीवन के लब्ज जो मायने रखते है वह हमेशा दिल से दुओं के लिए होते है बाकी सारी चीज़ें छोड़ अगर हम दुआ के लिए जी लेते है तो जीवन के मायने सीख लेते है
लब्ज जो मायने जीवन मे रखते है वह हर पल और हर बारी ख़ुशियाँ दे जाते है जो जीवन को समज के आगे बढ़ जाते है वह जीवन मे अलग तरह कि सोच और अलग मायने दे जाते है

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