Wednesday 21 October 2015

कविता २६९. जीवन की अनजान राहे

                                                         जीवन की अनजान राहे
हर राह पर जीवन के मोड़ बदलते जाते है कभी जाने पेहचाने तो कभी अनजाने मोड़ भी जीवन में आते है जिन्हें समज लेते है जिन्हें परख के चुन लेते है
कुछ मोड़ तो अनजाने होकर मन को सुहाने लगते है कभी किसी अनजान नगर में और कभी किसी अनजाने डगर पर हम भटकना चाहते है
हम समज लेते है हर बारी दुनिया को जिसे हम हर मोड़ पर परख लेना चाहते है उस मोड़ पर होती है अलग अलग चीज़ें जिनसे एहसास नये हम पाते है
राह और मोड़ चलते है जिस पर एहसास अलग अलग से पाते है जिन्हें समज लेते है हम फुरसत में क्योंकि जीने का अलग मज़ा हर बार जीवन में हम पाते है
कभी कभी अनजाने रास्त्ते पर राह नई पाते है उन पे भटकने से ही तो जीवन की उम्मीद अलग और नई आती है जब जब हम अलग राहों के ऊपर चलते है
तभी उनके ऊपर सपने नये आते है जिन्हे जीवन के हर मोड़ पर समज लेना हम चाहते है जब उन रास्त्ते से अलग चीजें हम देख नहीं पाते है
उन्हें परख लेना हम जीवन में चाहते है जीवन की हर सोच के अंदर हम एहसास नया पाते है उस सोच को समज लेते है जिसमे उम्मीदें पाते है
जीवन को जीते हुए हम जीवन को समज लेना हम चाहते है जीवन को हर बार हम समजे तो जीवन के रंग अलग आते है
जीवन के हर रास्त्ते को हर बार हम समज लेना चाहते है जीवन की हर धारा को धीरे धीरे से हम जीते है जब हम जीवन को समज ले तभी तो खुशियाँ पाते है
नये पुराने रास्त्तो से क्या जीवन तो हम हर बार समज लेना चाहते है जीवन के अंदर हर बार हम उम्मीदों की दुनिया ही अपने कोशिश से पाते है

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