Wednesday 28 October 2015

कविता २८२. दिशाओं कि अलग दुनिया

                                             दिशाओं कि अलग दुनिया
जब पर्बत पर चढते हैै तो दुनिया अलगसी दिखती है पर जब पर्बत से उतर जाते दुनिया कि सच्चाई अलग ही होती है तो कोई बताए हमको दोनो मे कौनसी बात झूठी होती है
दोनो बातों मे अलग अलग एहसास होता है कोई कुछ भी कह दे पर हमे दोनो बातें सच्ची लगती है जो जहाँ से दुनिया देखे उसे वही से दुनिया दिखती है
जब दोनों चीज़ों को एक को सच और एक झूठ कहती है पर दोनों चीज़ें सिर्फ़ सच और सच ही होती है दोनों चीज़ों को दुनिया पर अलग असर दिखाती है
पर इसलिए ही तो वह दोनों चीज़ों को मान नहीं पाती है वह चीज़ें तो अलग होती है पर एक चीज़ तो अलग अलग असर कभी कभी दिखाती है
उसे समज लेना जीवन मे ज़रूरी होता है एक चीज़ के अलग अलग पेहलूओं को जीवन हर बार दिखाता है एक चीज़ के अंदर रहती है चीज़ें कई तरह कि होती है
हर चीज़ के दो रूप हमेशा होते है हर बात के अंदर दो मतलब छुपे होते है अलग अलग छोर से अलग एहसास उनमें जीवन पर असर हर बार होता रहता है
एक ओर जीवन चीज़ को एक तरीक़े से दिखाता है वही दूसरे पल अलग नज़र आती है पर उसका मतलब चीज़ें झूठ नहीं होती है दोनों अपनी तरफ़ से सच ही होती है
तो जीवन का सच सिर्फ़ एक नहीं होता कभी कभी दो सच कि भी दुनिया होती है फुरसत मे उस सच को समज लेना ज़रूरी होता है क्योंकि उसमें तो जीवन का सच छुपा होता है
एक सच के अंदर अलग अलग तरह के कई सच हमेशा छुपे रहते है उन चीज़ों कि तो देखकर भी हम हर बार चुप रहते है तो अलग अलग ओर कि दोनो चीज़ें सच यह हम जानते है
पर जाने क्यूँ हम फिर भी जीवन मे उस सच कह नहीं पाते पर आजकल हम वह सच कहते है लोग अलग दिशा से अलग तरह कि दुनिया हर बार देखते रहते है

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