Wednesday 14 October 2015

कविता २५४. रब कि सोच

                                                                   रब कि सोच
हर सोच का आसमान पर कुछ तो असर होता है जब कोई अपने बजह से रोता है तो अपना रब भी रोता है क्योंकि तभी तो वह हमे सजा सुनाता है वह हमे सजा देता है
जीवन के अंदर अलग एहसास देता है जो हर बार हमें समजाता है की किसी को जीवन में दुःख देना हमारा मकसद नहीं होता है
हर बार हर सोच के संग हमारा दिल जो रोता है जब जब हम दुनिया को समजे उसका एक मकसद होता है जिसे परख लेना आसान ही होता है
रब जानता है सब कुछ जो हमारे मन में होता है जीवन को जब हम परखे उसमें एहसास तो जिन्दा होता है जो अपने निजी मकसद के लिये जिन्दा होता है
जीवन के हर मोड़ पर कुछ सोच को तो जीवन में रब हमारे अच्छे के लिए रखता है दूसरों को ना तकलीफ दो वह उस सोच में लिखा होता है
जब जब हम समजे उस सोच को उसके अंदर कुछ तो एहसास छुपा होता है जिसे परखे हर बार तो जीवन नया सा दिखता है
पर जब जब हम किसीको दर्द देते है हमारा रब रोता है क्योंकि उसका मतलब हमारा दर्द शुरू होता है उस दर्द को जो परखे तो उसका अलग मतलब होता है
जिन्दा होना भी जीवन के अंदर जरुरी होता है जीवन तो हर बार हमारी सोच को साँसे देता है जीवन को समज लेना अहम होता है
जीवन के अंदर रस जो भरता है वह तो दूसरों के साथ हँसने का रास्त्ता होता है जीवन के हर मोड़ पर अलग असर हर बार होता है
सोच के अंदर हर मोड़ पर रब सिर्फ सही राह चाहता है वह सजा नहीं देना चाहता पर इन्सान गलत मोड़ पे चल कर सजा पाता है
जीवन को परख ना जरुरी होता है यह जान लेना जरुरी होता है की खुदा हमेशा खुशियाँ और हँसी सबके लिए हर मोड़ पर हर बार चाहता है 

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