Tuesday 6 October 2015

कविता २३८. मंजिल और रास्ता

                                                               मंजिल और रास्ता
हर मंजिल का कोई अलग कारवा होता है हर सोच में इन्सान अलग दिशा में मुड़ता है जब जब हम जीवन को समजे अलग सोच को इन्सान समज पाता है
मंजिल तो अलग है तो रास्ता भी अलग ही होता है जीवन में हर रास्ता अलग पेहचान देता है जिसे परख लेना मुश्किल ही नहीं ना मुमकिन सा लगता है
मंजिल जो हर बार जीवन को मतलब देती है वह रास्तों के दम पर ही हर बार बनती रहती है रास्तों के अंदर दुनिया जो जिन्दा रहती है उसे समजे तो जीवन में अलग प्यास ही आती है
जीवन के अंदर  हर बार जीवन में कुछ एहसास तो छुपा रहता है जीवन के अंदर अलग असर हमेशा होता है राहों में ही जीवन छुपा होता है
अलग अलग रास्तों पर कुछ तो अलग तरह का भाव मन में तकलीफ देता है जीवन के हर राह पर कुछ तो अलग भावना का असर हर बार होता है
रास्तों में अलग तरह का असर हर बार होता है जो जीवन को अलग दिशा दे जाता है पर हर कदम कुछ तो अलग असर हर बार होता है
रास्तों को अंदर जीवन का अलग तरीका हर बार जीवन को कुछ तो असर हर मोड़ पर होता है जीवन के हर मोड़ पर नया असर होता है
मंजिलों से ज्यादा जीवन रास्तों पर ही गुजरता है इसलिए जीवन को समज लेना गलत लगता है रास्तों के अंदर जीवन का अर्थ बनता है
सारा जीवन रास्तों में ही तो भटकना यही तो हमारा जीवन होता है जीवन के अंदर राहों का कुछ अलग ही तरह का असर होता है
मंजिल के अंदर खुशियों का असर होता है पर हर मंजिल के हर अलग सोच हमे जिन्दा कर जाती है जीवन सिर्फ राहों से ही तो बनता है 

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