Friday 16 October 2015

कविता २५८. सही और ग़लत बात

                                        सही और ग़लत बात
किसी सीधी सी बात को समज कर हम कभी बड़ा काम करते है तो कभी ज़रूरी बात को अनदेखा कर के हम जीवन मे मुसीबत भी भर लेते है
यह तो जीवन है जिस मे कभी सही तो कभी ग़लत भी हम करते है कभी ख़ुशियाँ तो कभी कभी गमों को भी समज लेते है जीवन तो वह धारा है
जिसे हर बार हम जीवन के हर पथ पर हम समज लेते है जीवन कि साँसों को अलग सोच से हर बार हम परख लेते है जीवन के हर मोड़ पर हम जीवन को समज लेते है
हर बारी जीवन कि हर सोच और हर पुकार पर हम जीवन को अलग तरीक़े से समज लेने का दम भरते है पर हर बारी अपनी गलती से ही तो हम सीखते है
तो क्यूँ कतराते है हम उन गलतींयों से जिन्हें समज लेने का हम दम भरते है कभी सही है कभी ग़लत है जीवन के हर मोड़ पर हम बदलते रहते है
कभी फुरसत मे परखे खुदको पर हम हर बार बात को समज लेते है जीवन कि सही ग़लत हर सरगम को जी लेते है जिसे हर बारी परखे तो हम जीवन को जी लेते है
जीवन के हर मोड़ पर अलग अलग ख़याल तो जीवन मे हमे जिन्दा रखते है जिन्हें हम हर बार जीते है जीवन कि हर धारा मे अलग अलग रंग जो हर पल हमको दिखते है
उन्हें समज लेने कि सोच मे हम कभी कभी सही और कभी कभी ग़लत किनारे भी पकड़ लेते है जीवन कि उस धारा को जिसमे दो किनारे रहते है उन किनारों को हम अलग अलग दिशाओ से समज लेते है
जिन्हें समज लेना जीवन कि नई धारा दिखाता है हर सोच के अंदर नया एहसास जीवन कि नई सोच लाता है सही और ग़लत से उसे समजना आता है
जीवन कि हर परछाईं को वह रंग दे जाता है जीवन की सही और ग़लत सोच दोनों मे से सही सोच को चुनना ही हर बार सही दिशा दे जाता है वहीं तो हर हमारा जीवन होता है

No comments:

Post a Comment

कविता. ५१२५. किनारों को अंदाजों की।

                              किनारों को अंदाजों की। किनारों को अंदाजों की समझ एहसास दिलाती है दास्तानों के संग आशाओं की मुस्कान अरमान जगाती...