Thursday 22 October 2015

कविता २७१. मन के कोने के साये

                                        मन के कोने के साये
कभी हम मन को समज लेते है तो कभी समज लेना भूल भी जाते है मन के हर कोने में दिखते नये साये है जिन्हें परख लेते है तो उम्मीदें है पाते पर जाने क्यूँ मन को समज लेना हम भूल जाते है
मन के कोनों में रहते कई साये है जिन्हें समज लेने कि जगह हम उन्हें ही अपनाते है सायों को अपनाते नहीं उनसे छुटकारा है पाते पर हम हर पल उन सायों को अपनाते है
मन को हर बारी हम ख़ुशियाँ देना चाहते है हर बारी हम मन को समज लेते है उसी पल उस मन से चोट भी तो खाते है जिसे समज लेते है तो दुनिया के रंग नये दिख जाते है
पर हमे कहाँ फुरसत है उसे समज लेने कि इसीलिए तो हम उस मन हर बात छुपा लेते है उसे परख लेने कि जगह गलती से जीवन में सायों को जगह दे जाते है
जीवन में हमने किस चीज़ को जगह दी उसे समज लेने कि ज़रूरत होती है पर जब किसी को छुप के से जगह मिलती है जीवन में कहाँ वह चीज़ समज में आती है
जीवन में जो चीज़ सीधे जीवन में आती है उसे समज लेना आसान होता है साये का रंग अपने जीवन में भरते है साया अगर छाँव भी दे तो हम उसे समज लेते है
सायों के अंधेरों में ही हर पल हम दुनिया पाते है जिन्हें हम जीवन में हर पल समज लेते है उसे हर बार हम ग़लत ढंग से जीवन में समज लेते है
जिसे जीवन में परखे उस सोच को हर पल जीवन में हर बार अलग असर दे जाते है जीवन के अंदर अलग अलग कोने में अलग ख़याल रहते है
हमे हर कोने में अलग एहसास मिलते रहते है सही सोच का अलग असर हर पल होता है जिसे परख लेना जीवन मे हर बार अहम और ज़रूरी होता है
तो सायों से डरने कि जगह उनसे लढ लेना जीवन में हर बार सही होता है क्योंकि कोने मे छुपी बातें तो जीवन पर सबसे बुरा असर हर बार कर जाती है

No comments:

Post a Comment

कविता. ५१४५. आवाज कोई सपनों संग।

                           आवाज कोई सपनों संग। आवाज कोई सपनों संग खयाल सुनाती है कदमों को उजालों की पहचान पुकार दिलाती है उम्मीदों को किनारो...