Tuesday 13 October 2015

कविता २५२. तारों कि शीतलता

                                     तारों कि शीतलता
तारों के अंदर एक रोशनीसी होती है जिनके अंदर जीवन कि नई सुबह  होती है तारों के अंदर एक अलग उम्मीद सी बस जाती है जो जीवन को नये एहसास ओर उम्मीद दे जाती है
रोशनी के अंदर एक प्यारा शीतल एहसास वह लाती है जीवन के शीतल स्पर्श को नये सिरे से हमे समज लेती है एक शीतल रोशनी को वह नये तरह से जगा देती है
तारों के अंदर वह सोच नई रखते है उसके शीतल स्पर्श को हम हर बारी समज लेते है जिसे हर पल जीवन मे समजे वह एहसास ख़ुशियाँ देते है वह तारों कि शीतलता से मन को छू लेते है
जीवन के कोनो मे अलग सोच हम रखते है हर बार उस सोच को परख लिया करते है जीवन के हर रस को कभी हम भुलते है कभी समजते है जो जीवन को ख़ुशियाँ दे उस सोच को तरस जाते है
तारों मे तरह तरह कि रोशनी जीवन को छूती है उस शीतल रोशनी को देख लेने के लिए हम तरस जाते है जब जीवन मे हम सितारों कि रोशनी को समज लेने को तरस जाते है
उन रोशनी के घेरों को हम जीवन मे समज लेने को तरस जाते है उन्हें समज लेने कि उम्मीद हर बार हम कर जाते है शीतल से उन सायों मे हम जीवन को समज लेते है
शीतल से वह साये दुनिया को मतलब देते है कभी कभी हम उनमें दुनिया जी लेते है शायद दुनिया मे अलग एहसास जी जाते है उन तारों से ही तो हम उम्मीदें पाते है
उस रोशनी के साथ वह उम्मीद रख देते है जिसके अंदर हम अलग दुनिया रख देते है उन तारों के अंदर अलग रोशनी हम दे जाते है जिन्हें हम जीवन मे फुरसत से समज लेते है
शीतल सी उस रोशनी को हम हर बार परख लेते है क्योंकि उसकी शीतल आहट मे ही हम ख़ुशियाँ पाते है जिन्हें समज लेना हम अक्सर बड़ा आसन ही समज लेते है
पर उस शीतलता को मन मे भर लेना हम आसान नहीं समज सकते है जिन्हें शीतल समज कर हर बार हम जीवन मे परख लेते है जिनके बजह से जीवन पर अलग अलग असर दिखते है

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