Sunday 13 March 2016

कविता ५५६. बातों को ना दोहराना

                                                   बातों को ना दोहराना
हर बार बात दोहराने से अच्छा है किसी पल चुप ही रह जाये तो वही एहसास बडा सही लगता है पर मन कहाँ चुप कर पाते है
मन कि सोच को कहाँ समझ पाते है बरदाश तो करने को कहता है पर मन हर बार अंदर अलग सोच ही जिन्दा रखता है
जब कोई बात दुबारा कही जाये तो वह अक्सर जीवन मे मतलब नही रखती है जो जीवन को अलग आईना हर बार हर मोड पर दिखा जाती है
बात को फिर से कहना जीवन कि जरुरत होती है जो हमे हर बात बताती है जीवन को समझ लेने कि जरुरत हर मोड पर आगे ले जाती है
क्योंकि जिसे सुनने कि चाहत ना हो उसे बात बताने से मन कि सोच हर बार रोकती है जीवन मे कई बाते समझ लेनी पडती है
बातों को बार बार कहने से मन को वह बात दर्द देती है अलग एहसास दे जाती है बातों को समझ लेने कि जरुरत जीवन मे हर बार होती है
जीवन कि हर पल एक अलग सुबह होती है जो हमे नई शुरुआत देती है जिसे परख लेने कि जीवन मे जरुरत होती है जो जीवन को नई शुरुआत देती है
कोई बात समझ लेने कि चाहत ना हो तो जीवन मे बस रात ही रहती है जीवन मे सुबह को समझ लेने कि हर पल जरुरत होती है जो हमे आगे ले कर जाती है
जीवन मे अक्सर सतरंगी दुनिया कि रोशनी हर किरन मे होती है पर अलग कोई सच बात दब जाये तो जहर बन कर बाहर निकल आती है
मन मे कहाँ बात दब पाती है बात तो हर बार अलग सोच लेकर बाहर ही आ जाती है तो दबी बात ही हर बार अलग कहानी बनाती है

No comments:

Post a Comment

कविता. ५१२५. किनारों को अंदाजों की।

                              किनारों को अंदाजों की। किनारों को अंदाजों की समझ एहसास दिलाती है दास्तानों के संग आशाओं की मुस्कान अरमान जगाती...