Wednesday, 16 March 2016

कविता ५६३. किसी राह को छोडना

                                             किसी राह को छोडना
किसी राह पर चल दे तो जब तक जीवन उसे गलत साबित नही करता हमे उस राह से पीछे मुडना नही आता है राह को समझ लेना नही आता है
जीवन कि धारा मे बदलाव को समझ हम लेते है उस पर जीत और हार को मान भी लेते है पर सिर्फ क्योंकि हम हार गये मुड जाना हमे नही आता है
राह पर हर बार कुछ ना कुछ तो जरुरी होता है उस राह को समझ लेना हमे आसानी से नही आता है जिसमे सिर्फ जीत के लिए सही सोच को छोडना होता है
जीवन मे कई राहे तो आती है कई मोड और कई बाते हमे दे कर जाती है उस राह को जिसमे हमे सही दिख जाए उसे भुलाना हमे नही आता है
जीवन को तो कई बार कई दिशाओं मे हम समझ तो लेते है जीवन कि कहानी को खुदके फायदे के लिए मोड देना हमे नही आता है
राहों मे तो अक्सर लोग सोच को बदलते है पर असल सोच वही है जो जीवन को सही राह दे उसे सिर्फ छोटीसी जीत के खातिर भुला देना हमे नही आता है
जीवन कि राहों पर अलग अलग किस्से तो होते है पर किसी खयाल को समझ लेने के खातिर जीवन का मतलब गलत दिशा मे मुडना हमे नही आता है
सही राह को समझ तो हम लेते है पर उस राह को परख लेना और फिर जीत के खातिर उसे छोड देना हमे नही आता है
जीवन कि हर साँस मे सिर्फ सही का एहसास हो वह राह समझ लेना हमे आता है पर उस राह को किसी के कहने पर बदलना हमने नही सीखा है
जब सही राह पर हो तो हम सोचते है मुश्किल जिन्दगी आसान होती है हर बार हमारी जरुरत बनकर दुनिया मे खुशियाँ दे जाती है
जिन्दगी मे हर बार जरुरत सिर्फ खुशियाँ होती है जो जीवन को हर बार सही मोड पर हमे आगे ले कर जाती है रोशनी दे कर आगे बढती है

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