Monday 21 March 2016

कविता ५७२. सच्चाई को छू लेना

                                                               सच्चाई को छू लेना
जब सच्चाई की बात हो तो वह एक छोर पर नहीं रूकती है उसे जाना होता है उस हर किनारे पर जिसको उसकी जरूरत होती है इसलिए वह कहाँ रूकती है
सच्चाई एक नदियाँ जो हर जगह पर बहती है उसे परखे यह जरुरी नहीं है क्योंकि वह अक्सर कहाँ रूकती है वह छू लेती है हमे और हमारी दुनिया आगे बढ़ती है
सच्चाई की ताकद कुछ ऐसी है जो जीवन को नदियाँ की तरह छू लेती है सच्चाई तो पानी की तरह है जो जीवन में हर शरीर के हिस्से में चली जाती है
सच्चाई को परख लेने की जीवन में हर मोड़ पर जरूरत होती है सच में जीवन को बदल लेना ही जीवन की जरूरत होती  है क्योंकि सच्चाई हर बार यह कर गुजरती है
सच तो वही बात है जिसमे दुनिया हर मोड़ पर मतलब देती है सच ही तो ताकद है जो जीवन को नया विश्वास दे जाती है वह जीवन को सही सोच देती है
सच्चाई तो वही ताकद जो हर मोड़ को बदल देती है सवाल तो यह होता है की हम सच्चाई को ढूँढते है या सच्चाई हमे तलाश लेती है
जीवन के हर छोर को समझ लेने की हमें जरूरत होती है सच्चाई की रोशनी हर बार हमारी दुनिया बनाकर हमें खुशियाँ दे जाती है सच्चाई में ताकद होती है
सच्चाई में हर सोच की जो ताकद होती है वह हमें अपना एहसास दिखाए बिना ही हमारा जीवन बदलकर आगे जाती है हमें ताकद हर बार देती है
सच के हर मोड़ पर दुनिया हमे अलग राह  दिखाती है सच ही बार हमें ढूँढ कर आगे ले जाती है सच्चाई हमारे जीवन की उम्मीदे लाती है नई दिशा दे जाती है
सच्चाई के अंदर अलग बात जो जीवन को रोशनी दे जाती है जीवन के अंदर नई सच्चाई हर बार अपने आप ही नजर आती है जो जीवन को बदल कर जाती है 

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