Wednesday 9 March 2016

कविता ५४९. सुबह कि रोशनी या रात कि चांदनी

                                         सुबह कि रोशनी या रात कि चांदनी
सुबह कि रोशनी या रात कि चांदनी दोनों मे चुनने की नौबत कभी कभी आती है जो जीवन को शुरुआत दे कर आगे बढ जाती है
दोनों ही जीवन मे अक्सर जरुरी नजर आते है उनसे ही हमारी दुनिया बनती है क्योंकि उनमे ही तो सच्ची खुबसूरती दिख पाती है
हर बार जीवन मे चीजों को चुनने कि जरुरत नही होती है कभी कभी कई चीजे मिल जाती है यह खुदा कि रहमत होती है
क्योंकि दोनों रोशनीयों कि हमे जरुरत होती है उनमे ही तो हमारी किस्मत होती है इसलिए तो दोनों मिलती है हमे क्योंकि यह हमारी खुश किस्मत होती है
दोनों ही तो हमारी जरुरत होती है ताकद होती है उनसे ही हमारी दुनिया जन्नत होती है उनमे ही तो हम जीवन को मतलब देते है
कभी रात तो कभी दिन हमारी जरुरत होती है जीवन मे दोनों कि हमे चाहत होती है उनमे से एक को भी खो दो तो दुनिया मे मुसीबत होती है
तो क्यों चुने किसी एक सोच पर कहाँ दुनिया निर्भर होती है रात और दिन दोनों कि हमे जरुरत हर बार हर वक्त होती ही है
जीवन मे दोनों पलों कि रोशनी अहम होती है जिसकी हमे जरुरत हर बार होती है उस रोशनी कि ताकद पर ही हमारी दुनिया जिन्दा होती है
जीवन मे दोनों किनारों को दोनों रोशनीयों कि कहानी हमारी जरुरत होती है क्योंकि वही कहानी हमारे लिए खुबसूरत होती है
सिर्फ लोग कह रहे है इसलिए क्यूँ चुने हम जब के हमारे लिए दोनों चीजों को दिया हुआ है तो उनकी कदर करने कि हमे जरुरत होती है

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