Thursday, 31 March 2016

कविता ५९२. बातों कि कहानी

                                                   बातों कि कहानी
बार बार किसी बात को अनदेखा करते है पर फिर भी जाने क्यूँ उसी बात के संग दुनिया को समझ लेते है बात को समझ लेते है
किसी बात को दोहराना तो नही चाहते है पर बात को जाने क्यूँ अनजाने मे दोहराते जाते है जिस बातको भुला देना था उसको सोचते रहते है
यही से तो हमारे दर्द कि बजह होती है कभी कभी बाते जो जीवन के लिए गलत होती है वही मन मे अक्सर घर बना के जाती है
जीवन कि सारी दिशाए बदल जाती है क्योंकि गलत बात जो याद रखने के काबिल ना हो उसे याद रखने कि जरुरत हर बार मेहसूस होती है
जिस बात से दर्द हो उसे जाने क्यूँ दुनिया जीना चाहती है जीवन कि हर बात को समझ लेना जीवन कि अहम जरुरत होती है
बातों को समझकर आगे जाने कि जरुरत हर बार होती है बात के अंदर कहानी की दिशाए हर बार बदल जाती है नई उम्मीदे देती है
बातों को समझकर जीवन को आगे ले जाने कि जीवन को जरुरत अक्सर होती है बाते ही जीवन कि ताकद बनकर आगे बढती जाती है
हर बार हर बात के अंदर एक सोच छुपी रहती है जिसे परखकर दुनिया नया मोड देती है तो हर बार बात को समझ लेने कि जीवन मे जरुरत होती है
बात सही और गलत दोनों ओर से होती है जीवन को मतलब देने कि जरुरत हर बात और हर राह पर अलग एहसास देती रहती है दिशाए बदलती रहती है
बातों कि कहानी अलग अलग एहसास देकर जीवन को रोशनी दे जाती है कई बार उम्मीदे  देकर जाती है बातों कि कहानी अक्सर मन मे जिन्दा रहती है

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