Thursday 17 March 2016

कविता ५६५. बातों को समझ लेने कि बजह

                                          बातों को समझ लेने कि बजह
हर बात कहने की कोई निजी बजह नहीं होती है कोई बात सिर्फ सच्चाई के खातिर भी कही जाती है जब जीवन की धारा बदलती है
वही बात जीवन को मतलब देने की बजह बनती है पर दुनिया कहाँ उसे समझ लेती है हर बार बात के कुछ मतलब ढूँढती है बातों को समझ लेने कि कोशिश तो करती रहती है
पर दुनिया को कई बार सीधी बाते समझ नही आती है बात को टेढी बात बनाने मे दुनिया को कि हर बात निकल जाती है नई राह नजर आती है
बातों को सीधी करने के कई तरीके दुनिया को तो आते है जिन्हे समझ लेने मे ही हम अपनी खुशियाँ पाते है पर यह बात दुनिया को हजम नही होती है
कोई बात जीवन को समझमे नही आती है क्योंकि सीधी बात दुनिया टेढी कर के दिखा जाती है बात को सीधी कि जगह टेढी बनाना दुनिया जानती है
पर राह सीधी हो तो डर किस बात का है सीधी राहे भी तो ताकद दे जाती है जीवन के हर पेहलू को बदलकर दुनिया हर मोड पर बदलती जाती है
बातों को कहते रहना जीवन कि कहानी हर बार जीवन को मतलब देना चाहती है जीवन को समझ लेना हर बार अहम तरह कि चीजे जीवन मे रोशनी दे जाती है
सीधी बाते जीवन को टेढी राह को सीधी करना हर बार चाहती रहती है पर दुनिया उन्हे नही समझती है तो क्या सीधी राहे तो सीधी ही रहती है
सीधी राहे तो जीवन मे सीधी बाते दे जाती है टेढी बाते पर जाने क्यूँ दुनिया मन से ही लाती है पर जो सही सोच रखता है उसकी ही सोच आगे बढती है
सीधी राहे तो हमारे मन को अक्सर भाती है तो उन्हे चुन लो क्या फर्क पडता है कि उनमे दुनिया गलत बात ढूँढती है पर सही बाते तो जीवन मे सही ही साबित होती है

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