Monday 13 March 2023

कविता. ४७४४. किनारों कि समझ अक्सर।

                                  किनारों कि समझ अक्सर।

किनारों कि समझ अक्सर अरमानों कि कहानी देती है तरानों कि सुबह से आशाओं कि कोशिश तलाश दिलाती है लहरों कि सरगम पुकार सुनाती है।

किनारों कि समझ अक्सर सपनों कि आस देती है कदमों कि सोच से एहसासों कि रोशनी तराना दिलाती है जज्बातों कि मुस्कान पुकार सुनाती है।

किनारों कि समझ अक्सर नजारों कि सुबह देती है खयालों कि समझ से आवाजों कि धून पहचान दिलाती है बदलावों कि सौगात पुकार सुनाती है।

किनारों कि समझ अक्सर अंदाजों कि राह देती है इशारों कि सौगात से नजारों कि परख समझ दिलाती है इरादों कि कोशिश पुकार सुनाती है।

किनारों कि समझ अक्सर तरानों कि सरगम देती है नजारों कि आस से अरमानों कि सोच कोशिश दिलाती है लम्हों कि रोशनी पुकार सुनाती है।

किनारों कि समझ अक्सर आशाओं कि सौगात देती है राहों कि मुस्कान से दास्तानों कि तलाश सहारा दिलाती है दिशाओं कि समझ पुकार सुनाती है।

किनारों कि समझ अक्सर उजालों कि रोशनी देती है उम्मीदों कि सुबह से खयालों कि समझ पहचान दिलाती है आशाओं कि सरगम पुकार सुनाती है।

किनारों कि समझ अक्सर कदमों कि आहट देती है खयालों कि समझ से अफसानों कि आस तराना दिलाती है अंदाजों कि सुबह पुकार सुनाती है।

किनारों कि समझ अक्सर जज्बातों कि सोच देती है लहरों कि सरगम से अदाओं कि सौगात उमंग दिलाती है कदमों कि सोच पुकार सुनाती है।

किनारों कि समझ अक्सर अंदाजों कि आस देती है लम्हों कि रोशनी से कदमों कि सुबह अल्फाज दिलाती है आवाजों कि धून पुकार सुनाती है।

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