Tuesday 7 March 2023

कविता. ४७३८. जज्बात को सपनों कि।

                                       जज्बात को सपनों कि।

जज्बात को सपनों कि लहर कोशिश सुनाती है लम्हों को खयालों कि समझ अरमान जगाती है तरानों कि सुबह से आवाजों कि पुकार देती है।

जज्बात को सपनों कि आस सरगम सुनाती है कदमों को नजारों कि पहचान परख जगाती है उजालों कि एहसास से आशाओं कि पुकार देती है।

जज्बात को सपनों कि अदा सोच सुनाती है तरानों को उम्मीदों कि लहर खयाल जगाती है इशारों कि अहमियत से अंदाजों कि पुकार देती है।

जज्बात को सपनों कि उमंग सौगात सुनाती है अदाओं को दिशाओं कि कहानी बदलाव जगाती है राहों कि मुस्कान से तरानों कि पुकार देती है।

जज्बात को सपनों कि आवाज सुबह सुनाती है दास्तानों को कदमों कि कोशिश आस जगाती है इरादों कि सौगात से दास्तानों कि पुकार देती है।

जज्बात को सपनों कि राह अंदाज सुनाती है इरादों को नजारों कि अहमियत खयाल जगाती है अरमानों कि लहर से अफसानों कि पुकार देती है।

जज्बात को सपनों कि रोशनी किनारा सुनाती है आशाओं को बदलावों कि कोशिश अदा जगाती है उम्मीदों कि समझ से आवाजों कि पुकार देती है।

जज्बात को सपनों कि पहचान सरगम सुनाती है इशारों को लम्हों कि आहट अल्फाज जगाती है आशाओं कि खयाल से किनारों कि पुकार देती है।

जज्बात को सपनों कि उम्मीद खयाल सुनाती है तरानों को अरमानों कि सुबह तलाश जगाती है अंदाजों कि लहर से अफसानों कि पुकार देती है।

जज्बात को सपनों कि सरगम अदा सुनाती है दास्तानों को अदाओं कि सौगात परख जगाती है अरमानों कि सुबह से दास्तानों कि पुकार देती है।


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