Wednesday, 15 March 2023

कविता. ४७४६. अरमानों कि सुबह से जुड़कर।

                               अरमानों कि सुबह से जुड़कर।

अरमानों कि सुबह से जुड़कर दिशाओं कि तलाश सरगम देती है तरानों को उम्मीदों कि कोशिश एहसास सुनाती है लम्हों को खयालों कि मुस्कान देती है।

अरमानों कि सुबह से जुड़कर आशाओं कि राह तलाश देती है कदमों को अल्फाजों कि रोशनी किनारा सुनाती है लहरों को इशारों कि मुस्कान देती है।

अरमानों कि सुबह से जुड़कर आवाजों कि धून पुकार देती है नजारों को खयालों कि समझ सपना सुनाती है इरादों को आशाओं कि मुस्कान देती है।

अरमानों कि सुबह से जुड़कर जज्बातों कि सोच पहचान देती है दिशाओं को बदलावों कि सौगात खयाल सुनाती है नजारों को उजालों कि मुस्कान देती है।

अरमानों कि सुबह से जुड़कर दास्तानों कि परख रोशनी देती है अदाओं को अंदाजों कि आहट पुकार सुनाती है उम्मीदों को किनारों कि मुस्कान देती है।

अरमानों कि सुबह से जुड़कर अंदाजों कि आस अफसाना देती है कदमों को उजालों कि सौगात पहचान सुनाती है एहसासों को अदाओं कि मुस्कान देती है।

अरमानों कि सुबह से जुड़कर लहरों कि सौगात आहट देती है किनारों को आवाजों कि आस इशारा सुनाती है नजारों को दिशाओं कि मुस्कान देती है।

अरमानों कि सुबह से जुड़कर उजालों कि उमंग तराना देती है बदलावों को लम्हों कि रोशनी कोशिश सुनाती है दास्तानों को एहसासों कि मुस्कान देती है।

अरमानों कि सुबह से जुड़कर कदमों कि आस सरगम देती है नजारों को दिशाओं कि कहानी पहचान सुनाती है लम्हों को खयालों कि मुस्कान देती है।

अरमानों कि सुबह से जुड़कर एहसासों कि समझ इशारा देती है आवाजों को राहों कि सौगात उम्मीद सुनाती है किनारों को‌‌ राहों कि मुस्कान देती है।

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