Saturday 18 June 2022

कविता. ४४७६. उस लम्हे को क्या कहना।

                                 उस लम्हे को क्या कहना।    

‌उस लम्हे को क्या कहना जिस मे एहसासों कि सरगम सुनाकर आस आगे बढती है क्यों रोके उस पल को जिस संग उम्मीदों कि सरगम बहती है।

उस लम्हे को क्या कहना जिस मे आशाओं कि मुस्कान सुनाकर उमंग उड़ानें भरती है क्यों रोके उस एहसास को जिस संग उजालों कि सौगात बहती है।

उस लम्हे को क्या कहना जिस मे इशारों कि सोच सुनाकर लहर आगे बढती है क्यों रोके उस अफसाने को जिस संग जज्बातों कि पुकार बहती है।

उस लम्हे को क्या कहना जिस मे दास्तानों कि पुकार सुनाकर कोशिश उड़ानें भरती है क्यों रोके उस सोच को जिस संग आवाजों कि धून बहती है।

उस लम्हे को क्या कहना जिस मे सपनों कि सौगात सुनाकर पहचान आगे बढती है क्यों रोके उस रोशनी को जिस संग तरानों कि सोच बहती है।

उस लम्हे को क्या कहना जिस मे नजारों कि आस सुनाकर राह उड़ानें भरती है क्यों रोके उस खयाल को जिस संग बदलावों कि सरगम बहती है।

उस लम्हे को क्या कहना जिस मे राहों कि पहचान सुनाकर सोच आगे बढती है क्यों रोके उस जज्बात को जिस संग दास्तानों कि सुबह बहती है।

उस लम्हे को क्या कहना जिस मे जज्बातों कि समझ सुनाकर तलाश उड़ानें भरती है क्यों रोके उस कदम को जिस संग आशाओं कि परख बहती है।

उस लम्हे को क्या कहना जिस मे अंदाजों कि लहर सुनाकर कोशिश आगे बढती है क्यों रोके उस किनारे को जिस संग दिशाओं कि उमंग बहती है।

उस लम्हे को क्या कहना जिस मे आवाजों कि धून सुनाकर दास्तान उड़ानें भरती है क्यों रोके उस नजारे को जिस संग इशारों कि सौगात बहती है।

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