Tuesday 7 June 2022

कविता. ४४६५. जज्बात को मुस्कान।

                                जज्बात को मुस्कान।

जज्बात को मुस्कान एहसास सुनाती है राहों पर आशाओं कि पहचान सहारा दिलाती है लहरों को अफसानों कि सौगात कोशिश देकर चलती है।

जज्बात को मुस्कान अरमान सुनाती है रोशनी पर कदमों कि सरगम अहमियत दिलाती है सपनों को नजारों कि तलाश खयाल देकर चलती है।

जज्बात को मुस्कान परख सुनाती है आवाजों पर दिशाओं कि उमंग पुकार दिलाती है बदलावों को इशारों कि पहचान अल्फाज देकर चलती है।

जज्बात को मुस्कान आस सुनाती है नजारों पर उजालों कि समझ सौगात दिलाती है लम्हों को अरमानों कि धाराएं अल्फाज देकर चलती है।

जज्बात को मुस्कान किनारा सुनाती है तरानों पर आशाओं कि सुबह एहसास दिलाती है राहों को किनारों कि अहमियत अल्फाज देकर चलती है।

जज्बात को मुस्कान सपना सुनाती है कदमों पर आवाजों कि धून इशारा दिलाती है आशाओं को दिशाओं कि पहचान अल्फाज देकर चलती है।

जज्बात को मुस्कान पुकार सुनाती है लहरों पर सपनों कि उम्मीद पहचान दिलाती है दास्तानों को इरादों कि सरगम अल्फाज देकर चलती है।

जज्बात को मुस्कान सहारा सुनाती है उजालों पर अदाओं कि समझ बदलाव दिलाती है नजारों को अदाओं कि सुबह अल्फाज देकर चलती है।

जज्बात को मुस्कान सौगात सुनाती है कोशिश पर उजालों कि सोच आस दिलाती है सपनों को अरमानों कि तलाश अल्फाज देकर चलती है।

जज्बात को मुस्कान दास्तान सुनाती है नजारों पर आशाओं कि परख बदलाव दिलाती है अंदाजों को कदमों कि आहट अल्फाज देकर चलती है।

 

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