Sunday 19 June 2022

कविता. ४४७७. लहर अचानक कोई।

                                  लहर अचानक कोई।

लहर अचानक कोई कहानी सुनाती है नजारों को एहसासों कि सुबह जज्बात दिलाती है लम्हों को अरमानों कि धाराएं कोशिश सुनाकर बढती जाती है।

लहर अचानक कोई राह सुनाती है उम्मीदों को कदमों कि आहट अफसाना दिलाती है उजालों को अल्फाजों कि सोच सरगम सुनाकर बढती जाती है।

लहर अचानक कोई उमंग सुनाती है बदलावों को इशारों कि सौगात आस दिलाती है खयालों को तरानों कि सुबह एहसास सुनाकर बढती जाती है।

लहर अचानक कोई अदा सुनाती है दास्तानों को बदलावों कि उमंग अरमान दिलाती है सपनों को आशाओं कि मुस्कान किनारा सुनाकर बढती जाती है।

लहर अचानक कोई कोशिश सुनाती है तरानों को अंदाजों कि सोच इरादा दिलाती है नजारों को अदाओं कि सौगात अल्फाज सुनाकर बढती जाती है।

लहर अचानक कोई समझ सुनाती है नजारों को आवाजों कि धून मुस्कान दिलाती है तरानों को उम्मीदों कि उमंग इरादा सुनाकर बढती जाती है।

लहर अचानक कोई बदलाव सुनाती है राहों को अरमानों कि धाराएं अंदाज दिलाती है सपनों को खयालों कि सरगम परख सुनाकर बढती जाती है।

लहर अचानक कोई सौगात सुनाती है एहसासों को अदाओं कि समझ आवाज दिलाती है आवाजों को कदमों कि आहट पुकार सुनाकर बढती जाती है।

लहर अचानक कोई पुकार सुनाती है उम्मीदों को अंदाजों कि धून मुस्कान दिलाती है आशाओं को दास्तानों कि सौगात आस सुनाकर बढती जाती है।

लहर अचानक कोई तलाश सुनाती है तरानों को उम्मीदों कि सोच इरादा दिलाती है अंदाजों को इरादों कि पहचान कोशिश सुनाकर बढती जाती है।

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