Tuesday 21 June 2022

कविता. ४४७९. सुबह कि कोई किरण।

                                सुबह कि कोई किरण।

सुबह कि कोई किरण आज कोई इशारा देती है अरमानों को एहसासों कि सोच तराना दिलाती है जज्बातों कि मुस्कान अक्सर खयाल सुहाना देती है।

सुबह कि कोई किरण आज कोई कहानी देती है अंदाजों को इशारों कि सुबह एहसास दिलाती है लहरों कि पुकार अक्सर इरादा सुहाना देती है।

सुबह कि कोई किरण आज कोई नजारा देती है लम्हों को अफसानों कि सौगात कोशिश दिलाती है सपनों कि सरगम अक्सर सपना सुहाना देती है।

सुबह कि किरण आज कोई आस देती है लहरों को अल्फाजों कि पहचान मुस्कान दिलाती है लम्हों कि सौगात अक्सर बदलाव सुहाना देती है।

सुबह कि किरण आज कोई आवाज देती है जज्बातों को दास्तानों कि कोशिश अल्फाज दिलाती है कदमों कि आहट अक्सर उजाला सुहाना देती है।

सुबह कि किरण आज कोई कोशिश देती है उम्मीदों को आवाजों कि धून नजारा दिलाती है राहों कि रोशनी अक्सर एहसास सुहाना देती है।

सुबह कि किरण आज कोई पुकार देती है तरानों को उम्मीदों कि सौगात कोशिश दिलाती है इरादों कि मुस्कान अक्सर आवाज सुहाना देती है।

सुबह कि किरण आज कोई बदलाव देती है आशाओं को अदाओं कि समझ पुकार दिलाती है लहरों कि सौगात अक्सर किनारा सुहाना देती है।

सुबह कि किरण आज कोई मुस्कान देती है अंदाजों को इरादों कि तलाश पहचान दिलाती है दास्तानों कि कोशिश अक्सर जज्बात सुहाना देती है।

सुबह कि किरण आज कोई दास्तान देती है लम्हों को अरमानों कि धाराएं अंदाज दिलाती है आशाओं कि सौगात अक्सर अल्फाज सुहाना देती है।

 

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