Wednesday 10 August 2022

कविता. ४५२९. जब कोई मुस्कान सुनहरा।

                                     जब कोई मुस्कान सुनहरा।

जब कोई मुस्कान सुनहरा एहसास दिलाती है अदाओं को लम्हों कि कहानी अरमान सुनाती है सपनों को उम्मीदों कि पहचान इशारा देकर जाती है।

जब कोई मुस्कान सुनहरा किनारा दिलाती है आशाओं को जज्बातों कि रोशनी सुबह सुनाती है नजारों को अदाओं कि कोशिश इशारा देकर जाती है।

जब कोई मुस्कान सुनहरा दास्तान दिलाती है लहरों को अफसानों कि सौगात तलाश सुनाती है तरानों को अंदाजों कि राह इशारा देकर जाती है।

जब कोई मुस्कान सुनहरा नजारा दिलाती है दिशाओं को उजालों कि परख पहचान सुनाती है एहसासों को इरादों कि समझ इशारा देकर जाती है।

जब कोई मुस्कान सुनहरा सपना दिलाती है दास्तानों को बदलावों कि उमंग सहारा सुनाती है लहरों को अफसानों कि सरगम इशारा देकर जाती है।

जब कोई मुस्कान सुनहरा कोशिश दिलाती है लम्हों को कदमों कि आहट अफसाना सुनाती है जज्बातों को बदलावों कि उमंग इशारा देकर जाती है।

जब कोई मुस्कान सुनहरा उमंग दिलाती है राहों को अरमानों कि धाराएं अल्फाज सुनाती है नजारों को आवाजों कि धून इशारा देकर जाती है।

जब कोई मुस्कान सुनहरा समझ दिलाती है सपनों को अल्फाजों कि सोच इरादा सुनाती है दिशाओं को उजालों कि परख इशारा देकर जाती है।

जब कोई मुस्कान सुनहरा तराना दिलाती है दिशाओं को आवाजों कि धून कोशिश सुनाती है उम्मीदों को दास्तानों कि सुबह इशारा देकर जाती है।

जब कोई मुस्कान सुनहरा एहसास दिलाती है नजारों को जज्बातों कि लहर बदलाव सुनाती है राहों को एहसासों कि कहानी इशारा देकर जाती है।

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