Thursday 18 August 2022

कविता. ४५३७. जज्बात कि मुस्कान को।

                                     जज्बात कि मुस्कान को।

जज्बात कि मुस्कान को आस एहसास संग पुकार दिलाती है लम्हों को अरमानों कि सरगम तलाश देकर जाती है तरानों को अंदाजों का अफसाना सुनाती है।

जज्बात कि मुस्कान को आहट कोशिश संग अरमान दिलाती है लहरों को अल्फाजों कि सोच इरादा देकर जाती है आशाओं को अदाओं का अफसाना सुनाती है।

जज्बात कि मुस्कान को पुकार सुबह संग रोशनी दिलाती है अदाओं को लम्हों कि कहानी बदलाव देकर जाती है सपनों को नजारों का अफसाना सुनाती है।

जज्बात कि मुस्कान को सोच सरगम संग सौगात दिलाती है राहों को एहसासों कि तलाश खयाल देकर जाती है कदमों को आवाजों का अफसाना सुनाती है।

जज्बात कि मुस्कान को सुबह आस संग इशारा दिलाती है दास्तानों को बदलावों कि उमंग आवाज देकर जाती है इरादों को खयालों का अफसाना सुनाती है।

जज्बात कि मुस्कान को सौगात समझ संग आवाज दिलाती है उजालों को अल्फाजों कि सोच तलाश देकर जाती है अंदाजों को इरादों का अफसाना सुनाती है।

जज्बात कि मुस्कान को राह तराने संग अरमान दिलाती है लहरों को किनारों कि पुकार अल्फाज देकर जाती है नजारों को एहसासों का अफसाना सुनाती है।

जज्बात कि मुस्कान को समझ बदलाव संग रोशनी दिलाती है आशाओं को उम्मीदों कि सोच अरमान देकर जाती है राहों को दास्तानों का अफसाना सुनाती है।

जज्बात कि मुस्कान को परख पहचान संग कोशिश दिलाती है खयालों को तरानों कि पुकार अल्फाज देकर जाती है कदमों को लम्हों का अफसाना सुनाती है।

जज्बात कि मुस्कान को सोच पहचान संग तलाश दिलाती है राहों को एहसासों कि कहानी आस देकर जाती है तरानों को उम्मीदों का अफसाना सुनाती है।


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