Monday 29 August 2022

कविता. ४५४८. तरानों कि लहर से।

                                            तरानों कि लहर से।

तरानों कि लहर से आशाओं कि सरगम बदलाव सुनाती है लम्हों को खयालों कि समझ सपना दिलाती है अदाओं कि परख रोशनी देकर जाती है।

तरानों कि लहर से अंदाजों कि आस अफसाना सुनाती है नजारों को दिशाओं कि सुबह दास्तान दिलाती है राहों कि पुकार रोशनी देकर जाती है।

तरानों कि लहर से दिशाओं कि कोशिश अरमान सुनाती है जज्बातों को कदमों कि आहट सोच दिलाती है लहरों कि सौगात रोशनी देकर जाती है।

तरानों कि लहर से बदलावों कि सोच अहमियत सुनाती है इशारों को दास्तानों कि परख जज्बात दिलाती है उजालों कि कोशिश रोशनी देकर जाती है।

तरानों कि लहर से नजारों कि पहचान इशारा सुनाती है दिशाओं को अंदाजों कि आस सरगम दिलाती है जज्बातों कि सोच रोशनी देकर जाती है।

तरानों कि लहर से आवाजों कि धून पुकार सुनाती है अल्फाजों को खयालों कि पहचान किनारा दिलाती है नजारों कि सौगात रोशनी देकर जाती है।

तरानों कि लहर से अरमानों कि सुबह सपना सुनाती है नजारों को इरादों कि कोशिश बदलाव दिलाती है आवाजों कि आस रोशनी देकर जाती है।

तरानों कि लहर से जज्बातों कि मुस्कान एहसास सुनाती है लम्हों को इशारों कि परख आवाज दिलाती है सपनों कि सुबह रोशनी देकर जाती है।

तरानों कि लहर से दास्तानों कि परख अल्फाज सुनाती है आशाओं को नजारों कि पहचान इशारा दिलाती है लम्हों कि पुकार रोशनी देकर जाती है।

तरानों कि लहर से अदाओं कि सौगात कोशिश सुनाती है उजालों को बदलावों कि सोच मुस्कान दिलाती है कदमों कि आहट रोशनी देकर जाती है।

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