Saturday, 27 August 2022

कविता. ४५४६. उमंग कि सोच अक्सर।

                                             उमंग कि सोच अक्सर।

उमंग कि सोच अक्सर अदाओं कि तलाश सुनाती है नजारों से जुड़कर आशाओं कि सौगात सरगम दिलाती है लम्हों को खयालों कि सौगात देती है।

उमंग कि सोच अक्सर तरानों कि परख सुनाती है जज्बातों से जुड़कर आवाजों कि आस सौगात दिलाती है राहों को अंदाजों कि सौगात देती है।

उमंग कि सोच अक्सर खयालों कि समझ सुनाती है तरानों से जुड़कर दिशाओं कि सुबह दास्तान दिलाती है कदमों को उजालों कि सौगात देती है।

उमंग कि सोच अक्सर लहरों कि सुबह सुनाती है लहरों से जुड़कर अदाओं कि परख रोशनी दिलाती है किनारों को सपनों कि सौगात देती है।

उमंग कि सोच अक्सर दिशाओं कि सरगम सुनाती है जज्बातों से जुड़कर अंदाजों कि बदलाव सपना दिलाती है आशाओं को नजारों कि सौगात देती है।

उमंग कि सोच अक्सर लम्हों कि पुकार सुनाती है राहों से जुड़कर कदमों कि आहट तलाश दिलाती है इशारों को दास्तानों कि सौगात देती है।

उमंग कि सोच अक्सर सपनों कि आस सुनाती है नजारों से जुड़कर खयालों कि समझ मुस्कान दिलाती है आशाओं को बदलावों कि सौगात देती है।

उमंग कि सोच अक्सर उजालों कि सरगम सुनाती है दिशाओं से जुड़कर अंदाजों कि आस आवाज दिलाती है उम्मीदों को कदमों कि सौगात देती है।

उमंग कि सोच अक्सर राहों कि पहचान सुनाती है लम्हों से जुड़कर दिशाओं कि सुबह कोशिश दिलाती है अदाओं को तरानों कि सौगात देती है।

उमंग कि सोच अक्सर दास्तानों कि परख सुनाती है लहरों से जुड़कर आवाजों कि धून पुकार दिलाती है नजारों को खयालों कि सौगात देती है।

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