Thursday 4 August 2022

कविता. ४५२३. दास्तान कोई।

                                             दास्तान कोई।

दास्तान कोई किनारा देकर चलती है इशारों को जज्बातों का सहारा देकर बढती है उम्मीदों संग आशाओं कि सरगम तरानों कि पहचान दिलाती है।

दास्तान कोई सुबह देकर चलती है आशाओं को अदाओं का एहसास देकर बढती है उजालों संग एहसासों कि कहानी अंदाजों कि पहचान दिलाती है।

दास्तान कोई कोशिश देकर चलती है आवाजों को लम्हों का लहर देकर बढती है दिशाओं संग किनारों कि परख आशाओं कि पहचान दिलाती है।

दास्तान कोई कहानी देकर चलती है जज्बातों को दिशाओं का इशारा देकर बढती है लम्हों संग कदमों कि आहट अल्फाजों कि पहचान दिलाती है।

दास्तान कोई सरगम देकर चलती है अदाओं को खयालों का तराना देकर बढती है उमंग संग आवाजों कि धून कदमों कि पहचान दिलाती है।

दास्तान कोई नजारा देकर चलती है इरादों को अंदाजों का अल्फाज देकर बढती है खयालों संग बदलावों कि सोच राहों कि पहचान दिलाती है।

दास्तान कोई परख देकर चलती है अरमानों को किनारों का अफसाना देकर बढती है राहों संग अंदाजों कि मुस्कान नजारों कि पहचान दिलाती है।

दास्तान कोई रोशनी देकर चलती है लहरों को अल्फाजों का उमंग देकर बढती है उम्मीदों संग एहसासों कि तलाश अदाओं कि पहचान दिलाती है।

दास्तान कोई आवाज देकर चलती है बदलावों को तरानों का सहारा देकर बढती है एहसासों संग जज्बातों कि पुकार दिशाओं कि पहचान दिलाती है।

दास्तान कोई सरगम देकर चलती है आशाओं को अदाओं का तराना देकर बढती है लहरों संग अफसानों कि सौगात अंदाजों कि पहचान दिलाती है।

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