Thursday, 1 September 2022

कविता. ४५५१. किनारों को सपनों कि।

                                         किनारों को सपनों कि।

किनारों को सपनों कि लहर एहसास दिलाती है नजारों संग अरमानों कि पुकार इशारा लाती है लम्हों को खयालों कि सरगम रोशनी देकर जाती है।

किनारों को सपनों कि सोच अरमान दिलाती है जज्बातों संग आशाओं कि कोशिश सहारा लाती है दिशाओं को अंदाजों कि सुबह रोशनी देकर जाती है।

किनारों को सपनों कि कोशिश अल्फाज दिलाती है अदाओं संग तरानों कि सौगात सरगम लाती है कदमों को उजालों कि मुस्कान रोशनी देकर जाती है।

किनारों को सपनों कि आस कोशिश दिलाती है बदलावों संग उम्मीदों कि लहर पहचान लाती है नजारों को खयालों कि कोशिश रोशनी देकर जाती है।

किनारों को सपनों कि राह अफसाना दिलाती है लम्हों संग अदाओं कि सौगात तराना लाती है आवाजों को राहों कि पुकार रोशनी देकर जाती है।

किनारों को सपनों कि सौगात मुस्कान दिलाती है तरानों संग अंदाजों कि कोशिश बदलाव लाती है अरमानों को दिशाओं कि समझ रोशनी देकर जाती है।

किनारों को सपनों कि समझ सपना दिलाती है आवाजों संग दिशाओं कि सुबह दास्तान लाती है इशारों को लहरों कि कोशिश रोशनी देकर जाती है।

किनारों को सपनों कि तलाश परख दिलाती है इरादों संग अदाओं कि परख अहमियत लाती है लम्हों को आशाओं कि सरगम रोशनी देकर जाती है।

किनारों को सपनों कि उमंग अल्फाज दिलाती है लहरों संग बदलावों कि सोच बदलाव लाती है कदमों को उजालों कि सौगात रोशनी देकर जाती है।

किनारों को सपनों कि पुकार सहारा दिलाती है उजालों संग दास्तानों कि परख कोशिश लाती है अफसानों को अल्फाजों कि पुकार रोशनी देकर जाती है।

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