Thursday 29 September 2022

कविता. ४५७९. किनारों से जुडकर लम्हों कि।

                                किनारों से जुडकर लम्हों कि।

किनारों से जुडकर लम्हों कि पहचान इशारा दिलाती है आशाओं कि आहट से कदमों कि कोशिश अरमान सुनाती है उम्मीदों को समझ अल्फाज देती है।

किनारों से जुडकर लम्हों कि रोशनी एहसास दिलाती है कदमों कि सौगात से खयालों कि आस अहमियत सुनाती है आवाजों को तलाश अल्फाज देती है।

किनारों से जुडकर लम्हों कि आवाज तराना दिलाती है नजारों कि सोच से अफसानों कि समझ सुबह सुनाती है अंदाजों को जज्बात अल्फाज देती है।

किनारों से जुडकर लम्हों कि लहर सुबह दिलाती है उम्मीदों कि पहचान से अदाओं कि परख खयाल सुनाती है तरानों को उमंग अल्फाज देती है।

किनारों से जुडकर लम्हों कि राह अरमान दिलाती है उजालों कि सरगम से इशारों कि पुकार कोशिश सुनाती है अरमानों को दास्तान अल्फाज देती है।

किनारों से जुडकर लम्हों कि आस नजारा दिलाती है कदमों कि आहट से अरमानों कि सोच एहसास सुनाती है उजालों को सरगम अल्फाज देती है।

किनारों से जुडकर लम्हों कि कोशिश मुस्कान दिलाती है राहों कि पुकार से दिशाओं कि समझ सपना सुनाती है आशाओं को सौगात अल्फाज देती है।

किनारों से जुडकर लम्हों कि सौगात सहारा दिलाती है जज्बातों कि मुस्कान से आवाजों कि धून आस सुनाती है इशारों को परख अल्फाज देती है।

किनारों से जुडकर लम्हों कि अदा बदलाव दिलाती है अंदाजों कि रोशनी से उम्मीदों कि पहचान तलाश सुनाती है कदमों को आस अल्फाज देती है।

किनारों से जुडकर लम्हों कि मुस्कान दास्तान दिलाती है नजारों कि समझ से खयालों कि पुकार एहसास सुनाती है तरानों को आवाज अल्फाज देती है।

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