Friday 23 September 2022

कविता. ४५७३. किनारों से अक्सर नजारों कि।

                                       किनारों से अक्सर नजारों कि।

किनारों से अक्सर नजारों कि सरगम मुस्कान दिलाती है कदमों कि आहट से जुडकर आशाओं कि पहचान इशारा सुनाती है अदाओं कि परख दिलाती है।

किनारों से अक्सर नजारों कि सुबह कोशिश दिलाती है लम्हों कि रोशनी से जुडकर आवाजों कि धून अहमियत सुनाती है अंंदाजों कि पहचान दिलाती है।

किनारों से अक्सर नजारों कि सोच अल्फाज दिलाती है अदाओं कि परख से जुडकर अंदाजों कि सौगात सहारा सुनाती है जज्बातों कि सुबह दिलाती है।

किनारों से अक्सर नजारों कि मुस्कान सरगम दिलाती है दिशाओं कि समझ से जुडकर राहों कि पुकार सौगात सुनाती है तरानों कि सोच दिलाती है।

किनारों से अक्सर नजारों कि तलाश आस दिलाती है लहरों कि सरगम से जुडकर उजालों कि सुबह एहसास सुनाती है इशारों कि सौगात दिलाती है।

किनारों से अक्सर नजारों कि कोशिश तलाश दिलाती है लम्हों कि सोच से जुडकर उम्मीदों कि लहर अफसाना सुनाती है दास्तानों कि मुस्कान दिलाती है।

किनारों से अक्सर नजारों कि सरगम अरमान दिलाती है जज्बातों कि आहट से जुडकर खयालों कि आस उडान सुनाती है लम्हों कि रोशनी दिलाती है।

किनारों से अक्सर नजारों कि सोच अल्फाज दिलाती है उम्मीदों कि लहर से जुडकर आशाओं कि तलाश इशारा सुनाती है आवाजों कि धून दिलाती है।

किनारों से अक्सर नजारों कि परख आस दिलाती है दास्तानों कि परख से जुडकर अंदाजों कि सौगात कोशिश सुनाती है लम्हों कि पुकार दिलाती है।

किनारों से अक्सर नजारों कि सौगात सुबह दिलाती है दिशाओं कि समझ से जुडकर उजालों कि सोच अरमान सुनाती है सपनों कि सरगम दिलाती है।

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