Friday 2 September 2022

कविता. ४५५२. जज्बात से जुड़कर।

                                       जज्बात से जुड़कर।

जज्बात से जुड़कर मुस्कान कि लहर अरमान दिलाती है लम्हों को खयालों कि कोशिश बदलाव सुनाती है नजारों से सपनों कि सौगात अफसाना देती है।

जज्बात से जुड़कर आस कि सोच अल्फाज दिलाती है इशारों को दास्तानों कि उमंग पहचान सुनाती है आवाजों से खयालों कि समझ अफसाना देती है।

जज्बात से जुड़कर कोशिश कि राह तराना दिलाती है राहों को अंदाजों कि समझ अरमान सुनाती है आशाओं से एहसासों कि रोशनी अफसाना देती है।

जज्बात से जुड़कर दास्तान कि सौगात मुस्कान दिलाती है नजारों को कदमों कि आहट पुकार सुनाती है अदाओं से लम्हों कि आहट अफसाना देती है।

जज्बात से जुड़कर आवाज कि तलाश सरगम दिलाती है दिशाओं को तरानों कि सोच अरमान सुनाती है इशारों से अंदाजों कि सुबह अफसाना देती है।

जज्बात से जुड़कर सोच कि परख रोशनी दिलाती है इशारों को दास्तानों कि पहचान अहमियत सुनाती है अल्फाजों से लहरों कि सरगम अफसाना देती है।

जज्बात से जुड़कर अंदाजों कि कोशिश तराना‌ दिलाती है तरानों कि समझ सपना सुनाती है राहों से अफसानों कि कोशिश अफसाना देती है।

जज्बात से जुड़कर दिशाओं कि अहमियत खयाल‌ दिलाती है कदमों कि आहट सरगम सुनाती है अंदाजों से लम्हों कि पहचान अफसाना देती है।

जज्बात से जुड़कर बदलावों कि सोच किनारा दिलाती है नजारों कि सौगात अरमान सुनाती है उजालों से इशारों कि आस अफसाना देती है।

जज्बात से जुड़कर उजालों कि सुबह खयाल दिलाती है लहरों कि सरगम बदलाव सुनाती है इरादों से आवाजों कि अहमियत अफसाना देती है।

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