Sunday 4 September 2022

कविता. ४५५४. किसी पुकार को सुनकर।

                                                                  किसी पुकार को सुनकर।

किसी पुकार को सुनकर मुस्कान दिलों मे आती है एहसासों कि आंधी जज्बातों संग आगे बढती जाती है लहरों को खयालों कि सरगम इशारा दिलाती है।

किसी पुकार को सुनकर आवाज राहों मे आती है तरानों कि आंधी बदलावों संग आगे बढती जाती है लम्हों को उमंग कि पहचान इशारा दिलाती है।

किसी पुकार को सुनकर सोच अरमानों मे आती है उजालों कि आंधी उम्मीदों संग आगे बढती जाती है नजारों को दिशाओं कि समझ इशारा दिलाती है।

किसी पुकार को सुनकर आस दास्तानों मे आती है कदमों कि आंधी एहसासों संग आगे बढती जाती है इरादों को अंदाजों कि सौगात इशारा दिलाती है।

किसी पुकार को सुनकर समझ आवाजों मे आती है किनारों कि आंधी उजालों संग आगे बढती जाती है जज्बातों को कदमों कि आहट इशारा दिलाती है।

किसी पुकार को सुनकर सुबह दिशाओं मे आती है लम्हों कि आंधी खयालों संग आगे बढती जाती है राहों को कोशिश कि परख इशारा दिलाती है।

किसी पुकार को सुनकर सरगम अदाओं मे आती है लहरों कि आंधी जज्बातों संग आगे बढती जाती है आवाजों को अदाओं कि राह इशारा दिलाती है।

किसी पुकार को सुनकर रोशनी अंदाजों मे आती है अदाओं कि आंधी सपनों संग आगे बढती जाती है नजारों को राहों कि अहमियत इशारा दिलाती है।

किसी पुकार को सुनकर तलाश आशाओं मे आती है आशाओं कि आंधी कदमों संग आगे बढती जाती है अरमानों को अंदाजों कि सरगम इशारा दिलाती है।

किसी पुकार को सुनकर कोशिश उम्मीदों मे आती है बदलावों कि आंधी आशाओं संग आगे बढती जाती है खयालों को नजारों कि सोच इशारा दिलाती है।

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