Thursday 22 September 2022

कविता. ४५७२. उम्मीद कोई।

                                                      उम्मीद कोई।

 उम्मीद कोई कहानी सुनाकर चलती है आशाओं को कदमों कि आहट इशारा दिलाती है दास्तानों को अदाओं कि समझ तलाश देकर जाती है।

उम्मीद कोई आवाज सुनाकर चलती है किनारों को सपनों कि सुबह अरमान दिलाती है नजारों को दिशाओं कि अहमियत तलाश देकर जाती है।

उम्मीद कोई लम्हा सुनाकर चलती है अंदाजों को खयालों कि समझ अफसाना दिलाती है जज्बातों को अल्फाजों कि पुकार तलाश देकर जाती है।

उम्मीद कोई लहर सुनाकर चलती है दास्तानों को एहसासों कि रोशनी पुकार दिलाती है लम्हों को किनारों कि सोच तलाश देकर जाती है।

उम्मीद कोई कोशिश सुनाकर चलती है बदलावों को तरानों कि पहचान किनारा दिलाती है लहरों को इशारों कि आस तलाश देकर जाती है।

उम्मीद कोई आस सुनाकर चलती है अल्फाजों को उजालों कि सुबह दास्तान दिलाती है इरादों को आशाओं कि सरगम तलाश देकर जाती है।

उम्मीद कोई समझ सुनाकर चलती है दिशाओं को नजारों कि सोच आस दिलाती है इशारों को आवाजों कि पहचान तलाश देकर जाती है।

उम्मीद कोई सरगम सुनाकर चलती है तरानों को अंदाजों कि सौगात कोशिश दिलाती है दास्तानों को एहसासों कि सोच तलाश देकर जाती है।

उम्मीद कोई सुबह सुनाकर चलती है आशाओं को जज्बातों कि आस सरगम दिलाती है तरानों को अरमानों कि पुकार तलाश देकर जाती है।

उम्मीद कोई खयाल सुनाकर चलती है नजारों को दिशाओं कि समझ सपना दिलाती है लम्हों को अल्फाजों कि सौगात तलाश देकर जाती है।

No comments:

Post a Comment

कविता. ५१६५. उम्मीदों को किनारों की।

                               उम्मीदों को किनारों की। उम्मीदों को किनारों की सौगात इरादा देती है आवाजों को अदाओं की पुकार पहचान दिलाती है द...