Thursday 15 September 2022

कविता. ४५६५. कोशिश कोई लहर संग।

                                       कोशिश कोई लहर संग।

कोशिश कोई लहर संग मुस्कान देकर आगे बढती है एहसासों को अरमानों कि समझ इशारे दिलाती रहती है आवाजों कि पुकार से जुडकर पहचान तराने देती है।

कोशिश कोई लहर संग तलाश देकर आगे बढती है दास्तानों को अंदाजों कि सौगात सपना दिलाती रहती है जज्बातों कि सोच से जुडकर अहमियत तराने देती है।

कोशिश कोई लहर संग अरमान देकर आगे बढती है नजारों को दिशाओं कि परख आस दिलाती रहती है इशारों कि रोशनी से जुडकर सरगम तराने देती है।

कोशिश कोई लहर संग सुबह देकर आगे बढती है जज्बातों को कदमों कि आहट सहारा दिलाती रहती है आशाओं कि सरगम से जुडकर पुकार तराने देती है।

कोशिश कोई लहर संग लम्हा देकर आगे बढती है तरानों को अदाओं कि सौगात खयाल दिलाती रहती है अंदाजों कि सुबह से जुडकर सोच तराने देती है।

कोशिश कोई लहर संग सौगात देकर आगे बढती है सपनों को आशाओं कि पुकार आस दिलाती रहती है जज्बातों कि आस से जुडकर सुबह तराने देती है।

कोशिश कोई लहर संग परख देकर आगे बढती है कदमों को दिशाओं कि सौगात तलाश दिलाती रहती है किनारों कि समझ से जुडकर राह तराने देती है।

कोशिश कोई लहर संग पहचान देकर आगे बढती है लम्हों को खयालों कि पहचान राह दिलाती रहती है नजारों कि सौगात से जुडकर उमंग तराने देती है।

कोशिश कोई लहर संग बदलाव देकर आगे बढती है नजारों को इशारों कि आवाज बदलाव दिलाती रहती है उजालों कि आस से जुडकर उम्मीद तराने देती है।

कोशिश कोई लहर संग खयाल देकर आगे बढती है राहों को अल्फाजों कि समझ इरादा दिलाती रहती है अंदाजों कि परख से जुडकर सौगात तराने देती है।

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