Sunday 11 December 2022

कविता. ४६५२. किसी इशारे को दास्तानों कि।

                                  किसी इशारे को दास्तानों कि।

किसी इशारे को दास्तानों कि पहचान कोशिश सुनाती है सपनों को एहसासों कि रोशनी संग अरमान जगाती है तरानों को उम्मीदों कि पुकार सहारा देती है।

किसी इशारे को दास्तानों कि सौगात तलाश सुनाती है लम्हों को खयालों कि समझ संग नजारा जगाती है लहरों को दिशाओं कि कहानी सहारा देती है।

किसी इशारे को दास्तानों कि सोच अरमान सुनाती है लहरों को नजारों कि पहचान संग अल्फाज जगाती है लम्हों को खयालों कि समझ सहारा देती है।

किसी इशारे को दास्तानों कि परख कोशिश सुनाती है जज्बातों को कदमों कि आहट संग बदलाव जगाती है उजालों को आशाओं कि सरगम सहारा देती है।

किसी इशारे को दास्तानों कि सरगम आस सुनाती है नजारों को दिशाओं कि कहानी संग कोशिश जगाती है तरानों को अरमानों कि सुबह सहारा देती है।

किसी इशारे को दास्तानों कि रोशनी सपना सुनाती है कदमों को अदाओं कि पहचान संग मुस्कान जगाती है दिशाओं को आवाजों कि धून सहारा देती है।

किसी इशारे को दास्तानों कि सुबह किनारा सुनाती है लम्हों को बदलावों कि सोच संग अरमान जगाती है राहों को अल्फाजों कि मुस्कान सहारा देती है।

किसी इशारे को दास्तानों कि पुकार आवाज सुनाती है इरादों को आशाओं कि लहर संग एहसास जगाती है जज्बातों को अंदाजों कि आस सहारा देती है।

किसी इशारे को दास्तानों कि सोच तराना सुनाती है किनारों को अल्फाजों कि मुस्कान संग अफसाना जगाती है कदमों को उजालों कि राह सहारा देती है।

किसी इशारे को दास्तानों कि समझ पहचान सुनाती है आशाओं कि सरगम संग तलाश जगाती है लहरों को अफसानों कि समझ सहारा देती है।

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