Friday 9 December 2022

कविता. ४६५०. किनारों को सपनों कि।

                                    किनारों को सपनों कि।

किनारों को सपनों कि पुकार सहारा देती है लहरों कि आहट से आशाओं कि सरगम तलाश दिलाती है खयालों को अंदाजों कि आस अल्फाज दिलाती है।

किनारों को सपनों कि आस आवाज देती है तरानों कि सुबह से अंदाजों कि रोशनी कोशिश दिलाती है लम्हों को दास्तानों कि परख अल्फाज दिलाती है।

किनारों को सपनों कि आहट पहचान देती है नजारों कि सोच से दिशाओं कि समझ सपना दिलाती है लहरों को इशारों कि सौगात अल्फाज दिलाती है।

किनारों को सपनों कि रोशनी अफसाना देती है बदलावों कि सौगात से अदाओं कि परख इरादा दिलाती है नजारों को खयालों कि समझ अल्फाज दिलाती है।

किनारों को सपनों कि अदा कोशिश देती है कदमों कि लहर से अफसानों कि सुबह दास्तान दिलाती है अरमानों को दिशाओं कि मुस्कान अल्फाज दिलाती है।

किनारों को सपनों कि राह अरमान देती है खयालों कि समझ से आशाओं कि सोच आवाज दिलाती है उजालों को अंदाजों कि आस अल्फाज दिलाती है।

किनारों को सपनों कि लहर इशारा देती है जज्बातों कि सोच से एहसासों कि समझ सरगम दिलाती है दास्तानों को अदाओं कि कोशिश अल्फाज दिलाती है।

किनारों को सपनों कि आवाज सरगम देती है नजारों कि सौगात से उजालों कि राह आस दिलाती है लम्हों को खयालों कि समझ अल्फाज दिलाती है।

किनारों को सपनों कि उमंग पहचान देती है इशारों कि सरगम से खयालों कि सुबह दास्तान दिलाती है कदमों को उजालों कि पुकार अल्फाज दिलाती है।

किनारों को सपनों कि समझ कोशिश देती है उम्मीदों कि परख से आवाजों कि धून पुकार दिलाती है एहसासों को अदाओं कि सुबह अल्फाज दिलाती है।

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