Tuesday, 13 December 2022

कविता. ४६५४. किनारों से आशाओं कि।

                                  किनारों से आशाओं कि।

किनारों से आशाओं कि सरगम सहारा देती है तरानों कि आहट इशारा दिलाती है लम्हों कि रोशनी अक्सर अल्फाजों कि मुस्कान देकर चलती है।

किनारों से आशाओं कि पहचान परख देती है कदमों कि आस सरगम दिलाती है सपनों कि सोच अक्सर उम्मीदों कि बदलाव देकर चलती है।

किनारों से आशाओं कि सौगात कोशिश देती है लहरों कि राह अरमान दिलाती है उजालों कि सरगम अक्सर एहसासों कि समझ देकर चलती है।

किनारों से आशाओं कि सुबह दास्तान देती है आवाजों कि पुकार अफसाना दिलाती है नजारों कि सोच अक्सर अंदाजों कि परख देकर चलती है।

किनारों से आशाओं कि परख आस देती है अंदाजों कि अदा कोशिश दिलाती है कदमों कि आहट अक्सर सपनों कि राह देकर चलती है।

किनारों से आशाओं कि सोच बदलाव देती है दिशाओं कि कहानी सरगम दिलाती है आवाजों कि आस अक्सर दास्तानों कि पुकार देकर चलती है।

किनारों से आशाओं कि कोशिश तलाश देती है इशारों कि सौगात अहमियत दिलाती है अंदाजों कि रोशनी अक्सर जज्बातों कि मुस्कान देकर चलती है।

किनारों से आशाओं कि सरगम खयाल देती है तरानों कि सुबह आस दिलाती है अरमानों कि पहचान अक्सर खयालों कि सोच देकर चलती है।

किनारों से आशाओं कि आस पुकार देती है नजारों कि सौगात आवाज दिलाती है लम्हों कि आहट अक्सर अरमानों कि पहचान देकर चलती है।

किनारों से आशाओं कि रोशनी तराना देती है कदमों कि आस सरगम दिलाती है लहरों कि सुबह अक्सर दास्तानों कि अहमियत देकर चलती है।


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