Saturday 3 December 2022

कविता. ४६४४. खयालों कि समझ से।

                                     खयालों कि समझ से।

खयालों कि समझ से सपनों कि कोशिश देकर चलती है राहों को अरमानों संग आशाओं से जज्बात दिलाती है लहरों कि पहचान सहारा देती है।

खयालों कि समझ से नजारों कि सोच देकर चलती है अदाओं को दिशाओं संग अंदाजों से पुकार दिलाती है किनारों कि मुस्कान सहारा देती है।

खयालों कि समझ से इशारों कि सौगात देकर चलती है उम्मीदों को कदमों संग आस से रोशनी दिलाती है दास्तानों कि परख सहारा देती है।

खयालों कि समझ से अंदाजों कि आस देकर चलती है किनारों को अल्फाजों संग तलाश से पहचान दिलाती है नजारों कि सोच सहारा देती है।

खयालों कि समझ से उजालों कि सुबह देकर चलती है दिशाओं को बदलावों संग आस से पुकार दिलाती है कोशिश कि लहर सहारा देती है।

खयालों कि समझ से जज्बातों कि परख देकर चलती है आवाजों को अदाओं संग कोशिश से एहसास दिलाती है लम्हों कि आहट सहारा देती है।

खयालों कि समझ से दास्तानों कि पुकार देकर चलती है आशाओं को लम्हों संग आवाजों से उमंग दिलाती है जज्बातों कि आस सहारा देती है।

खयालों कि समझ से आशाओं कि तलाश देकर चलती है तरानों को उम्मीदों संग बदलावों से उजाला दिलाती है अदाओं कि परख सहारा देती है।

खयालों कि समझ से दिशाओं कि सरगम देकर चलती है नजारों को राहों संग आवाजों से पहचान दिलाती है तरानों कि सुबह सहारा देती है।

खयालों कि समझ से एहसासों कि रोशनी देकर चलती है लम्हों को अरमानों संग इशारों से अहमियत दिलाती है अंदाजों कि सौगात सहारा देती है।

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