Saturday, 24 December 2022

कविता. ४६६५. उजालों कि पुकार अक्सर।

                                 उजालों कि पुकार अक्सर।

उजालों कि पुकार अक्सर इशारों कि तलाश दिलाती है लम्हों को खयालों कि समझ सपना देकर जाती है इरादों को आशाओं कि सरगम सुनाती है।

उजालों कि पुकार अक्सर उम्मीदों कि लहर दिलाती है नजारों को दिशाओं कि सुबह दास्तान देकर जाती है नजारों को राहों कि सरगम सुनाती है।

उजालों कि पुकार अक्सर दास्तानों कि परख दिलाती है दास्तानों को एहसासों कि सोच खयाल देकर जाती है जज्बातों को कदमों कि सरगम सुनाती है।

उजालों कि पुकार अक्सर सपनों कि पहचान दिलाती है आशाओं को अदाओं कि परख इशारा देकर जाती है तरानों को उम्मीदों कि सरगम सुनाती है।

उजालों कि पुकार अक्सर दिशाओं कि सोच दिलाती है अंदाजों को बदलावों कि आस बदलाव देकर जाती है किनारों को सपनों कि सरगम सुनाती है।

उजालों कि पुकार अक्सर आवाजों कि धून दिलाती है इशारों को लम्हों कि रोशनी सपना देकर जाती है खयालों को इरादों कि सरगम सुनाती है।

उजालों कि पुकार अक्सर अंदाजों कि आस दिलाती है नजारों को दिशाओं कि कोशिश अरमान देकर जाती है किनारों को सपनों कि सरगम सुनाती है।

उजालों कि पुकार अक्सर दास्तानों कि परख दिलाती है लहरों को नजारों कि सोच एहसास देकर जाती है दिशाओं को उम्मीदों कि सरगम सुनाती है।

उजालों कि पुकार अक्सर एहसासों कि समझ दिलाती है लम्हों को तरानों कि उमंग परख देकर जाती है नजारों को खयालों कि सरगम सुनाती है।

उजालों कि पुकार अक्सर नजारों कि सोच दिलाती है इशारों को दास्तानों कि सौगात अरमान देकर जाती है अदाओं को अंदाजों कि सरगम सुनाती है।


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