Sunday, 18 December 2022

कविता. ४६५९. रोशनी कि सोच अक्सर।

                                      रोशनी कि सोच अक्सर।

रोशनी कि सोच अक्सर उम्मीदों कि मुस्कान दिलाती है लम्हों को खयालों कि समझ सहारा देकर जाती है जज्बातों को कदमों कि आहट सुनाती है।

रोशनी कि सोच अक्सर दास्तानों कि कोशिश दिलाती है लहरों को नजारों कि सुबह अफसाना देकर जाती है खयालों को इशारों कि आहट सुनाती है।

रोशनी कि सोच अक्सर उजालों कि पहचान दिलाती है तरानों को अरमानों कि पुकार बदलाव देकर जाती है इरादों को आशाओं कि आहट सुनाती है।

रोशनी कि सोच अक्सर दिशाओं कि कहानी दिलाती है अंदाजों को एहसासों कि सौगात तलाश देकर जाती है किनारों को सपनों कि आहट सुनाती है।

रोशनी कि सोच अक्सर तरानों कि सुबह दिलाती है जज्बातों को अफसानों कि समझ अरमान देकर जाती है बदलावों को दिशाओं कि आहट सुनाती है।

रोशनी कि सोच अक्सर लहरों कि सरगम दिलाती है आशाओं को अदाओं कि परख खयाल देकर जाती है अंदाजों को तरानों कि आहट सुनाती है।

रोशनी कि सोच अक्सर किनारों कि आस दिलाती है अरमानों को आवाजों कि धून पहचान देकर जाती है किनारों को सपनों कि आहट सुनाती है।

रोशनी कि सोच अक्सर अंदाजों कि उमंग दिलाती है अल्फाजों को उम्मीदों कि पुकार आवाज देकर जाती है नजारों को लहरों कि आहट सुनाती है।

रोशनी कि सोच अक्सर तरानों कि सौगात दिलाती है नजारों को खयालों कि समझ बदलाव देकर जाती है अफसानों को आवाजों कि आहट सुनाती है।

रोशनी कि सोच अक्सर इरादों कि सरगम दिलाती है दिशाओं को कदमों कि परख अहमियत देकर जाती है सपनों को अंदाजों कि आहट सुनाती है।


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