Sunday 28 February 2016

कविता ५२९. सोच के सात रंग

                                               सोच के सात रंग
सोच के सातों रंग होते जिन्हे हम हर बार जीना चाहते है पर कभी किसी रंग से उलझन हो तो हम उस रंग को भुला देना चाहते है
जीवन को सात एहसासों मे हर पल हम जीना चाहते है जीवन कि कोई नई धारा मे कभी हम जी लेते है और उसे ही समझ लेना चाहते है
वही तो जीवन सही तरीके से जी पाता है जो जीवन को समझ लेना चाहता है जो जीवन को हर धारा मे जी कर मुस्कुरा पाता है
जीवन को रंगों मे समझना जीवन मे खुशियाँ देता है उन रंगों मे जीवन को समझ लेना जिनमे वह दिख जाये उस सोच मे असल मजा होता है
रंग को समझकर ही जीवन अपनी दिशा बनाता है जीवन के रंगों मे ही दुनिया का सच खोज लेना  जीवन मे जरुरी होता है
सोच मे जीवन को समझ लेना हर बार नया रंग देता है सोच कि ताकद से ही दुनिया मे अलग अलग तरह का रंग भरता है जो जीवन को खुशबू देता है
रंगों के अंदर सपनों कि दुनिया हर बार जिन्दा होती है जीवन मे रंग ही तो खुशियाँ दे जाते है उन रंगों के साथ ही तो हमारी दुनिया बनती है
सोच तो कई रंग जगाकर दुनिया को जिन्दा कर जाती है सोच ही तो वही एहसास है जिसमे दुनिया जीवन को मतलब हर पल दे जाती है
सोच तो सात एहसासों मे दुनिया को रंगों मे भर देती है हर रंग मे कोई ना कोई खुशियाँ जिन्दा हर बार नजर आती है जीवन मे नया एहसास दे जाती है
रंग तो मतलब हर बार देते है जिनसे दुनिया जिन्दा हो जाती है हर एहसास को एक रंग समझ लेना तो समझ मे बात एक आती है
हर रंग कि बस एक ख्वाईश नजर आती है वह रंग तो बस खुशियाँ चाहता है हर बार उनमे खुशियों कि शुरुआत नजर आती है

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