Saturday, 6 February 2016

कविता ४८४. नदियाँ के अंदर की सोच

                                                                 नदियाँ के अंदर की सोच
नदियाँ तो बहती है जिसे समज लेना बड़ा प्यारा लगता है पर उसे परख लेना बड़ा जरुरी होता है जीवन की वह बाते बता क्यों हमें लिखा हुआ लगता है
पर क्या नदियाँ की धारा को समझ कर दुनिया समझ पाती है ऐसा हमे नहीं लगता है दुनिया समझ लेने के खातिर तो जिन्दगी ठीक तरह से जी लेनी पड़ती है
जीवन तो अक्सर कई मोड़ पर अलग अलग किनारों से जाता है जीवन की धारा के अंदर दुनिया होती है नदियाँ तो सिर्फ पानी को लेकर बहती है
जीवन को परख लेने के लिए उसे जीना पड़ता है जीवन को हर राह पर दुनिया समझ लेती है पानी से ज्यादा जीवन को जीने से ही हमे दुनिया समझ पाती है
कुछ पल के लिए थके हुई साँसो को पानी ठंडक तो दे जाता है पर हर पल जीवन को सोच नई देता है पर उस सोच पर आगे जाना भी तो जीवन में जरुरी होता है
जीवन के भीतर हमें बातों को समझ लेना होता है सिर्फ पानी को नहीं कभी कभी जीवन को परख लेना होता है क्योंकि पानी तो सिर्फ मन को बेहलाता है
हमे जीवन को समझ लेने के लिए आगे बढ़ना पड़ता है जीवन की कई बाते हमें सिखाता है पानी से ज्यादा जीवन को समझ लेना जरुरी हर बार नजर आता है
जीवन को जीते है तो ही जीवन मे नया मजा आता है क्योंकि जीवन के अंदर नदियाँ तो सोच देती है उसे अपना लेना ही जीवन को रोशनी दे जाता है
जीवन का मतलब उसमे छुपा होता है अगर उसे परख ले तो ही जीवन का एहसास सही बन जाता है नदियाँ से सोच तो हमे मन दे जाता है
पर नदियाँ से आगे बढ़कर उस सोच को भी हमे समझ लेना पड़ता है क्योंकि जीवन जीने से ही हर बार उम्मीदे मिल पाती है क्योंकि बिना कोशिश के कोई भी चीज जीवन में मतलब नहीं पाती है 

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