Monday 8 February 2016

कविता ४८९. दुनिया को बदल लेने की कोशिश

                                                     दुनिया को बदल लेने की कोशिश                    
जब धूप जलाये तो हम उसे कोसते है जब थंड सताये तो हम उसे कोसते है पर जीवन में हर बार हम दुनिया को कहाँ समझ लेते है
इसलिए तो जब हम सही करते है और हमे दुनिया कोसे तो जाने क्यूँ हम खुदको कोसते है खुद जीवन को आसानी से नहीं समझ पाते है 
और हम जिसकी मदद को जाते है वह साथ ना दे और दुनिया कोसे तो हम खुद को कोसते है हम नहीं समझ पाते है की हम गलत नहीं होते है 
दुनिया के अंदर की गलतियों के लिए हम खुदको कोसते है हम धुपको नहीं पर अपने आपको तपने के लिए जलने के लिए हर बार कोसते है 
जीवन में उलझन को नहीं खुद को उसके होने के लिए हर बार कोसते है जीवन में सही चीजे लाना आसान होता है पर हम जीवन को समझ नहीं पाते है 
गलत चीजों के जगह हम अपनी सही सोच को कोसते है जीवन के अंदर हर बार राह अलग अलग होती है और सही राह में भी तो मुसीबते होती है 
पर हम यही सोचते है की काश हम सही राह को समझ लेने पर हम सही फक्र कर पाते है उसकी जगह हम जीवन में सही सोच को गलत समझ लेते है 
 गलत तरीके से हर बार जब लोग जीत जाते है हम यही सोच जीवन के अंदर रखते है सही सोच को परख लेने की जरूरत हम हर बार रखते है 
सही सोच को बदल लेने की जरूरत हमे जीवन में नहीं होती है पर जब दुनिया कहती है हमे दुनिया को बदल लेने की जगह अपने आपको समझ लेने की जरूरत होती है
जीवन में जब दुनिया की गलती समझ लेते है तो भी उसके जगह हम अपने आपको बदल लेने की कोशिश हम हर बार करते है और खुदको गलत बनाते है 

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