Wednesday 10 February 2016

कविता ४९२. कुदरत का अलग एहसास

                                                        कुदरत का अलग एहसास 
कुदरत को समझ लेना अलग अलग असर दिखाता है कुदरत में हर बार हर कदम अलग एहसास अलगसा होता है पर हम जब समझ पाते है
कुदरत तो साथ देती है जिसे परख लेने की हर बार जरूरत होती है कुदरत ही ताकद होती है जो हर मोड़ में उम्मीदे तो देती है कुदरत ही खुबसूरत लगती है 
कुदरत ही हर बार नया एहसास दे जाती है जिसे कुदरत कहते है उसमे ताकद हर बार आगे ले जाती है कुदरत की बाते हर बार निराली है 
हम कितना भी चाहे पर वह पीछे हटनेवाली नही है वह हर बार हर ताकद के संग खुशियाँ बदलती है जिसे देखने से ही जीवन में खुशियाँ आ जाती है 
जीवन में कुदरत की ताकद हमे नई सुबह देती है कुदरत के अंदर अलग एहसास हर मोड़ पर देती है कुदरत को समझना ही जीवन की जरूरत होती है 
कुदरत ही हमे रोशनी और जीवन को अलग रंग  दिखाती है उस कुदरत के संग ही हमारी जंग शुरू रहती है क्योंकि कुदरत में ही जीवन का अंत भी छुपा होता है 
कुदरत से लढते है ताकि उसे रोक पाये कुदरत के साथ आगे बढ़ते है क्योंकि उसके साथ ही हर मंज़िल नजर आती है बड़ा अजीब रिश्ता है हमारा कुदरत से जो हर बार अलग रंग दिखाता है 
कभी उसे परख कर जीवन को आगे ले जाता है कुदरत के हर राह को समझ लेना जीवन में हमें कहाँ आता है जीवन को समझ लेना अलग अलग मकसद दे जाता है 
कुदरत का बदलते रहना हर बार हमे कहाँ समझ आता है कुदरत में अलग अलग राह को समझ लेना हमे रोशनी दे जाता है कुदरत ही जीवन को मतलब दे जाती है 
क्योंकि कुदरत के अंदर जीवन का अलग अलग किनारा होता है जो हर बार हमारे जीवन की राह बदलता जाता है जीवन के अंदर अलग एहसास दिखाता है 
जो जीवन बनता है और उसे खत्म भी कर जाता है जीवन के हर सोच पर जीवन की अलग राह देता है जीवन को समझ लेना मुश्किल बनाता है 

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