Wednesday 20 April 2016

कविता ६३२. दूर किनारों को समझ लेना

                                         दूर किनारों को समझ लेना
हर पल मौसम बदलते रहते है जिन्हे समझकर हमे आगे जाते है पर कई बार हमारे अंदाज भी गलत हो जाते है तो किनारे दूर हो जाते है
पर क्या कतराना उन किनारों तक जाने से क्योंकि वह थोडे से ही तो दूर चले जाते है क्या कतराना उनसे जब वह जीवन मे उम्मीदे देकर जाते है
दूर पर ही तो वह हमारी चाहत बढाते रहते है हमे नई उम्मीदे देकर नई ताकद कि सोच जीवन मे उजागर कर जाते है
कभी कभी हम दूर के किनारों कि चाहत से ही असली मंजिल पाते है क्योंकि जब तक गलत सही ना हो हम कहाँ उम्मीदे पाते है
हम हर बार एक पल मे सही नही हो पाते है हम सोचते रहते है सही दिशाओं को समझकर हमे उम्मीदे देकर जाते है
दूर खडे उन किनारों को परखकर हम दुनिया मे आगे चलते जाते है उस सोच को समझकर  हम आगे जाते है जब हमे जीत के आगे अहम चीजे सीखाते है
जीवन कि बात दूर के किनारे को देखकर कई बार हम जीवन मे समझ लेते है हम उसको आगे लेकर जाना हर पल चाहते है
गलत चीज को परखकर हम सही कर लेना चाहते है जिसे समझकर जब हम आगे बढते है हमारे किनारे बदलते जाते है हम दिशाए बदलकर जाते है
मौसम तो जीवन को हर मोड पर बदलते  जाते है पर हमारा फर्ज है हम मौसम संग ना बदले हम गलतियों को सुधार लेने कि चाहत मे हम अक्सर बदल जाते है
जीवन को हम कई दिशाओं मे आगे ले जाना चाहते है पर जब तक गलत सही ना हो हम इस जीवन मे कुछ नही कर पाते है बंद आँखों से आगे बढते जाते है

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