Saturday, 23 April 2016

कविता ६३८. लम्हों कि ताकद

                                                  लम्हों कि ताकद
जीवन के हर सोच मे अलग परछाई पैदा हो जाती है जिसमे जीना हर मोड पर जरुरी नजर आता है परछाई मे ही तो जीवन कि सोच नजर आती है
जीवन के हर लम्हे को समझकर ही तो हमारी दुनिया बन पाती है क्योंकि लम्हों मे ही तो दुनिया कि सोच हर पल छुपी होती है
जीवन के लम्हो मे ही तो दुनिया दिख पाती है क्योंकि लम्हा ही तो जीवन कि ताकद होता है जो हमे समझ देकर हर बार आगे लेकर जाता है
हर लम्हा ही तो हमारी दुनिया बनकर आगे जाता है वही तो जीवन कि ताकद बन पाता है जिसे परख आगे चलने कि जरुरत हर बार होती है
क्योंकि हर लम्हा ही तो जीवन कि ताकद होती है जिसमे जीवन कि खुशियाँ हर बार हर पल बँसी होती है जो हमे डराती है वह उन्हे खो देने कि सोच ही होती है
लम्हा ही तो जीवन कि अलग सोच है इसलिए लम्हों को समझ लेने कि जरुरत होती है लम्हों के अंदर जीवन कि नई मिसाल जिन्दा हर बार रहती है
लम्हा कई मोड पर जीवन कि दिशाए बदलकर दुनिया को किसी और रंग मे ही बदलकर हर मोड को समझकर आगे जाना दिखाकर आगे जाती है
लम्हा ही तो दुनिया के कई रंग दिखाकर जाता है जिन्हे समझकर आगे जाने कि जीवन मे कई बार कई मोडों पर जरुरत होती ही है
जीवन कई लम्हों के साथ अक्सर बनता है जो उम्मीदों कि पूँजी कभी काटों कि राह भी बनकर अक्सर जीवन मे आते है पर कुछ भी हो उन्हे समझकर आगे जाने कि जरुरत तो होती ही है
लम्हों मे तो कई किसम कि ताकद छुपी होती है जिन्हे परखकर खुशियों तक जाना ही जीवन कि सही जरुरत और अहम ताकद होती है

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