Monday, 18 April 2016

कविता ६२९. गीत सबको सुनाना

                                            गीत  सबको सुनाना
गीत को समझ लेना तो बस तभी होता है जब गीतों मे कुछ लब्ज दिखते है गीत ही तो जीवन कि ताकद बनकर आगे चलते है
गीतों मे अक्सर मतलब होते है गीत जो जीवन कि उम्मीदे बनते है उन्हे समझकर ही तो हम हर पल आगे बढते है जीवन से लढते है
पर कुछ लोगों को गीत सुनाना गीतों कि तोहीनसा लगता है हम जानते है गीत खुदा कि देन है वह सबके होते है पर फिर भी हम चोट खाते है
जब वह गीत सबके लिए लिये गाते है कुछ लोगों के अल्फाज चीर के जाते है मन मे चुभन सी पैदा कर मन को गम देकर जाते है
हम जीवन मे गीतों से खुशियाँ लाना चाहते है कुछ लोग नशतर कि तरह उन्हे दिल मे चुभाना चाहते है गमों कि मेहफिल बनाना चाहते है
जब सुनते है उस दिल को तो जीवन कि धारा को बदलकर हम गीत के एहसास को बदल देना चाहते है जीवन मे आगे जाना चाहते है
गीत के अंदर मतलब तो कई तरह के होते है जो हमे हर बात मे कई किसम के रंग हर बार हर बात मे दे कर जाते है आगे लेकर जाते है
गीत को समझकर जीवन कि धारा को कई बार परखकर आगे ले जाना चाहते है वह हर बार उम्मीदे देते है पर वही उम्मीदे हम गलत लोगों को बाँटना अक्सर दिल से नही चाहते है
गीत अलग अलग तरह के होते है पर सही गीत वही है जो मन को छू कर आसमान कि चुपके से सैर कराते आशाओं कि किरण बनकर आगे जाते है
गीत के अंदर कई मतलब देकर हम जीवन मे आगे जाते है जिसे समझकर हम आगे जाते है पर कभी कभी कुछ लोगों को हम अपने गीत नही सुनाना चाहते है
माफ करना ए खुदा तेरा यह तोहफा हम बाँट नही पाते है हम चाहते है तेरी तरह बनकर बिछू को भी बचाये पर नतीजे से डरकर हाथ पिछे हट जाते है 

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