Monday 4 April 2016

कविता ६०१. जीवन को पूछना

                                              जीवन को पूछना
जब सुबह से पूछा श्याम कैसी होगी बिना बोले हि चली गयी हमने खुदसे सोचा श्याम अलग ही होगी अंजाम अलग ही होगे
जब हमने पूछा जीवन से राह कैसे समझ लेंगे वह भी गुजरता चला गया हम बैठे ही रह गये हर हालात को बिना समझे
किसी सोच को मतलब देकर जीवन को अलग खयाल रखे होते है जीवन कहाँ बताता है खयालों को वह हम हर बार कहते है रहते
जीवन से पूछा तो जवाब नही कभी देता है पर जीवन को अलग तरीके से पूछ लेना जाने क्यूँ जरुरी लगता है पर हम उसे समझ नही पाते
जीवन को जीना है फिर भी जीवन मे जाने क्यूँ समझ लेना जरुरी नही लगता उसे पूछा तो जीवन कभी जवाब ही नही देता इसीलिए हम जीवन को जीना कभी नही समझते
काश के हम जीवन को कई किनारों मे समझ पाते पर जीवन को समझ लेना आसान नही होता है क्योंकि उसे समझ लेना काश रोशनी दे पाता
कुछ बाते जो जीवन को मकसद दे जाती है वह अक्सर जीवन कि दुनिया बदलकर जाती है रोशनी कि ताकद को पाना आसान नही होता
कई बार चाहा है पर जीवन जवाब नही देता जिसे आसानी से समझ ले वह किताब नही होता जीवन को धीरे से समझ लेना जरुरी है होता
जब पूछा तो जीवन हमे जवाब नही देता पर हमे उसे समझ लेना हर बार जरुरी है लगता जीवन को कई दिशाओं मे परख लेना उम्मीदे है देता
जीवन को बिना  पूछे ही तो समझ लेना है  क्योंकि बिना जवाब दिये आगे जाने कि जीवन फिदरत रखता है उम्मीदे है पाता

No comments:

Post a Comment

कविता. ५१२४. बदलाव को लहरों की।

                                बदलाव को लहरों की। बदलाव को लहरों की मुस्कान कोशिश सुनाती है दिशाओं को नजारों संग आहट तराना सुनाती है आवाजों...