Thursday, 21 April 2016

कविता ६३५. बात कि सच्चाई

                                                      बात कि सच्चाई
हर पल हम यही सोचते है कुछ लोग कैसे हमे फँसाते है पहले तो किसीके खिलाफ भडकाते है और फिर आसानी से  आगे निकल जाते है
हम तो खुश सिर्फ इस बात मे है कि हम वक्त पे संभल गये पर बाकी लोग कहाँ अपनी गलती मान पाते है वह देखते रहते है गलत चीज को और बहाने बनाते जाते है
जीवन मे पल पल हम अपनी गलती पर पछताते है पर लोग अक्सर जीवन मे उसे दोहराते जाते है दिशाए बदलते रह जाते है
लोगों को तो अलग अलग किनारे बदलकर जीवन कि धारा बदलकर आगे चलते जाने की आदत होती है पर हम जीवन मे हर बार दिशाए बदलकर जाते है
जब जब जीवन को समझ लेते है तो उसे मेहसूस तो हर पल कर पाते है पर लोग दूसरे कि चोटों को जब अनदेखा करते है मन मे चोट हम पाते है
पल को परखकर जीवन कि नई सुबह जब हमे रोशनी दे जाती है उसे समझकर आगे ले जाने कि रोशनी हमे हर बार आगे लेकर जाती ही है
हर मोड को समझकर जीवन कि सौगाद हर बार मिलती है जीवन मे कुछ लोगों के अंदर बस एक जिद्द होती है कि वही सही है उन्हे गलत साबित करने कि मेहनत बेकार होती है
जीवन को सही दिशाए वह जीवन मे कहाँ चाहते है तो हम ही उनसे दूर किनारा कर के ही जी लेना हर बार मन से जी लेते है
कुछ लोग तो अक्सर जीवन मे झूठ के लिए ही आगे बढते जाते है उन्हे कहाँ जीवन के किनारे समझ आ पाते है वह अपने सोच मे ही घिरे रह जाते है
जीवन को समझकर आगे जाने कि जरुरत हर बार सच के साथ होती है पर जो उसे समझ ना पाये उनकी दुनिया कुछ अलग कहानी दे पाती है
पर सबकी यही चाहत कहाँ होती है कुछ लोगों को झूठ मे ही खुशियाँ मिलती है तो क्या करे हम हमारी दुनिया तो सच्चाई से चलाते है

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