Saturday 16 April 2016

कविता ६२५. किसी पल के अंदर

                                                      किसी पल के अंदर
कभी किसी पल जीवन को समझकर कोई शुरुआत हो जाती है उस पल के अंदर जीवन को हम समझ तो पाते है
पल को पलकों के अंदर  छुपाना तो हम अक्सर चाहते है वही पल जीवन को नई उम्मीदे देकर अलग दुनिया मे लेकर चले जाते है
पल मे हमे समझदारी के एहसास कि शुरुआत नजर आती है पल मे ही दुनिया कि रीत अपनी दुनिया बदलकर रखती है
पल को समझकर उसके अंदर अलग दुनिया दिख जाती है पल को समझकर जीवन को आजमाये तो उसमे नयी सोच आती है
पलों के अंदर दुनिया को अलग एहसास देनेवाली सोच कोई नई बात बताती है पल को समझकर जीवन कि तलाश एक अलग एहसास दे जाती है
पल को अलग तरह से देखे तो उनमे कोई ना कोई तो ताकद हर मोड पर रोशनी देकर आगे चली जाती है वह उम्मीदे देकर जाती है
पल मे तो जीवन कि दिशाए बदल पाती है किसी पल को अलग दिशाए देकर जीवन कि आदत हर मोड पर दुनिया बदलकर जाती है
पल तो वह ताकद जो हमे रोशनी देती है जिसे समझकर आगे जाने कि शुरुआत जरुरत लगती है जो जीवन मे हर पल मे होती है
पल को परखकर समझकर आगे जाने कि जीवन मे हर मोड पर आदत तो होती ही है पर कभी कभी किसी पल मे दुनिया को समझ लेने से ज्यादा उस पल मे जीने कि जरुरत होती है
पल के अंदर दुनिया को समझकर आगे जाने कि आदत तो होती ही है पल को मन से जोडने कि हर बार जरुरत होती है 

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