Tuesday 5 April 2016

कविता ६०३. चलना और उड़ना

                                                                चलना और उड़ना                                   
परिंदो से उडना कब सीखे जब जीवन मे चलना ही ठिक से सीख नही पाये जीवन कि धारा को समझ भी नही पाते है क्योंकि चलने मे ही जीवन कि सारी मेहनत चली जाती है
जीवन मे हर बार परिंदो को समझकर उडान भरने कि आदत होती है चलना ही जीवन कि जरुरत होती है जो जीवन मे हर पल नई सीख दे जाती है आगे ले चलती है
उडना तो जीवन कि जरुरत नही लगती है चलने से ही जीवन कि बाते आगे ले जाने कि दिशाए बनती है जो जीवन को अक्सर ताकद देती है
चलना ही जीवन कि जरुरत होती है जो जीवन को साँस बन के आगे ले जाती है जिसे समझ लेने कि जीवन मे हर बार हर राह पर जीवन मे ताकद होती है
चलने से ज्यादा हमे कहाँ किसी चीज कि जरुरत होती है जो चीज हमे आगे लेकर जाये उसमे दुनिया कि हर बार हकिकत छुपी होती है
परिंदो को समझ लेने कि कहाँ फुरसत होती है पर फिर भी हमे उडने कि जरुरत होती है इसलिए जो फुरसत मे वह सीखा दे उसकी तलाश होती है
जो आसमान मे उडना दिखाये उसकी दुनिया मे हर पल हर मोड पर जरुरत होती है क्योंकि दुनिया अक्सर हकिकत को बदलना तो चाहती है पर उतनी कहाँ हमारी मेहनत होती है
चलना ही जीवन कि ताकद होती है जो जीवन को उम्मीदे दे जाती है इसलिए तो उडने कि जरूरत सबसे ज्यादा नही होती है चलने कि होती है
चलना ही जीवन कि ताकद होती है पर उड़ने से ज्यादा जीवन में आगे चलने की जरूरत होती है चलना ही जीवन की जरूरत होती है उड़ने से ज्यादा चलने की ही जीवन में अहमियत होती है
चलने से ही जीवन में नई जीवन नई शुरुआत होती है उड़ने से ज्यादा चलने में ही जिन्दगी गुजर जाती है उड़ना ही जीवन की सबसे जरूरी चीज होती है पर चलना सबसे अहम चीज होती है 

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